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________________ जीव का कल्याण होगा, तप के माध्यम से ही होगा। जो भी तप के माध्यम से अपनी इच्छाओं का निरोध कर देता है, उसी का जीवन पवित्र बनता है। गर्मी के मौसम में एक बार एक सेठ जी घड़ा खरीदने कुम्हार क यहाँ गये | कुम्हार ने सेठ जी को देखते ही उठकर उन्हें प्रणाम किया। सेठ जी बोले मुझे एक अच्छा-सा घड़ा चाहिय | कुम्हार ने उन्हें एक घड़ा दिया | सेठ जी ने अपनी तर्जनी-उंगली से जैसे ही उसे बजाया उस घड़े से मधुर स्वर निकल पड़ा सा रे गा म प ध नि स जिसका अर्थ सेठ जी का ऐसा भासित हुआ जैसा आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपनी मूकमाटी कृति में लिखा है कि सारे गम आत्मा क पद अर्थात् स्थान नही हैं। ऐसे उस घड़े के उपदेश से सेठ जी बड़े प्रभावित हुये | वे उस कुम्भ से एक प्रश्न करते हैं कि__ हे कुम्भ ! तुम्हारे पास ऐसी अद्भुत शक्ति कहाँ से आई कि जिस कारण तुम अपने शत्रु जैसे पानी को जो मिट्टी को गलाकर उसका स्वरूप ही बिगाड़ कर रख देता है, धारण कर ठण्डा बनाते हो तथा सारे संसार को यह उपदेश देते हो कि सारे संसार क गम अर्थात् दुःख आत्मा के पद अर्थात् स्थान नहीं हैं। अतः समस्त दुःख-सुख में समता भाव धारण कर मोक्ष मार्ग पर चलकर आत्मा से परमात्मा बनो। तब कुम्भ कहता है-सेठ जी! मैं बहुत बड़ी यात्रा करके आया हूँ सुनो एक समय वह था जब मेरा कोई मूल्य नहीं था। मैं मिट्टी के रूप में नीचे जमीन पर पड़ा रहता था, मेरे ऊपर से लोग मुझे पैरों से कुचलते हुये निकलते थे। एक बार ऐसा विकट समय आया कि (415)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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