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________________ इसलिय रात्रि विश्राम वहीं वन में ही एक वृक्ष के नीचे करने का विचार किया। अपने अश्वों की एवं स्वयं की सुरक्षा की दृष्टि से रात्रि का एक-एक प्रहर बारी-बारी से पहरा दने का निर्णय लिया | सबसे पहले बलराम एवं श्रीकृष्ण सो गये और सात्यकी जागकर पहरा देने लगे | अचानक वहाँ एक भयानक पिशाच प्रकट हुआ और सात्यकी से बोला कि मुझे इन दोनों को खा लेने दो तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। यह प्रस्ताव भला सात्यकी को कैसे मंजूर हाता। सात्यकी और पिशाच में भयंकर द्वंद्व युद्ध छिड़ गया। जैसे-जैसे सात्यकी का क्रोध बढ़ा, पिशाच की शक्ति भी अधिक होती गई | सात्यकी को द्वंद्व युद्ध में जगह-जगह चोट आ गई। घुटन, जंघा, कुहनी छिल गईं। जैसे-तैसे लड़ते-लड़ते एक प्रहर व्यतीत हो गया तो पिशाच भी अचानक लुप्त हो गया। सात्यकी ने बलराम को जगा दिया एवं स्वयं सो गये | यही घटना बलराम के साथ घटी। पिशाच अचानक प्रकट हुआ और उसका युद्ध बलराम से होने लगा। जैसे-जैस बलराम का क्रोध बढ़ा, पिशाच की शक्ति भी बढ़ती गई। बलराम के भी हाथ-पैर जगह-जगह छिल गये। जैस ही दूसरा प्रहर बीता, पिशाच फिर गायब हो गया। बलराम न भी दूसरा प्रहर व्यतीत हुआ दख श्री कृष्ण को जगा दिया एवं स्वयं सो गये | थोड़ी देर में पिशाच फिर से प्रकट हुआ। श्रीकृष्ण से भी उसका द्वंद्व हाने लगा, किन्तु इस बार कुछ उल्टा हुआ । ज्यों-ज्यों पिशाच गुस्से में आता, श्रीकृष्ण शांत और अधिक शांत होते गये | जैस-जैस श्रीकृष्ण शान्त होते गये, पिशाच का बल घटता गया, पिशाच छोटा होता चला गया और अन्त में इतना छोटा हो गया कि श्रीकृष्ण ने उसे अपने वस्त्र के एक छोर में बांध लिया। तीसरा प्रहर व्यतीत होते-हाते सुबह हो गई तो बलराम और सात्यकी भी जाग गये। दोनों ने अपने-अपने घाव (28)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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