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________________ परिवार की फिक्र है इसी से हम फँसे हुये हैं। हम तो स्वतंत्र हैं, परन्तु बाल बच्चों में मोह होने स ही फँस गये हैं | क्या उम्मीद है कि हम इन बन्धनों से निकल पायंग? जो जो व्यवस्था हम सोचे हुये हैं, क्या इनको पूरा करक विश्राम कर लेंग? देखो, मेंढकों को कोई तौल सकता है क्या? नहीं । अरे! व तो उछल जावेंगे | कोई इधर उछलेगा, कोई उधर उछलेगा। वे तौले नहीं जा सकते । इसी प्रकार, क्या अपने परिग्रह में रहकर अपनी व्यवस्था बना सकते हो? कितनी ही व्यवस्था बन जायेगी तो फिर काई नई बात खड़ी हो जायेगी। क्योंकि बात बाहर में खड़ी नहीं होती, अन्दर में खड़ी होती है, सो अन्दर उपादान अयोग्य है ही। इसलिये सदा इच्छायें बनी ही रहती हैं | इच्छा ही अशान्ति का कारण है। जिसके अन्दर इच्छायें हैं, वे सुख-शान्ति प्राप्त नहीं कर सकते । एक समय की बात है। एक राजा का बेटा बहुत बीमार था । उसने अनेक डॉक्टर-वैद्यों को दिखाया लेकिन आराम नहीं हुआ | राजा न ज्योतिषियों से उपचार पूछा, ता उन्होंने बताया कि यदि इसे किसी सुखी व्यक्ति के कपड़े पहना दिय जायें तो यह ठीक हो जायेगा । राजा सोचने लगा कि मेर से बड़ राजा बहुत सुखी हैं चलूँ उनस कपड़े लाकर पहना दूं। वह उन बड़े राजा के पास जाकर बोला-सुखी व्यक्ति के कपड़े पहना देने से मेरा लड़का ठीक हो जायेगा अतः आप अपने कपड़े दे दीजिय | ता वह राजा बाला – मैं तो तुमस भी ज्यादा दुःखी हूँ | इसलिये तुम मुझसे भी बड़े राजा के पास जाओ। वह और बड़े राजा के पास गया। वह हताश होकर लौट रहा था तो मार्ग में उसे काई ज्ञानी पुरुष मिला | उसने राजा से हताश होने का कारण पूछा राजा ने सब वृतान्त कह सुनाया और प्रार्थना की कि आप किसी सुखी व्यक्ति का पता बता दीजिये | ज्ञानी 413)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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