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________________ को खूब खिलाया-पिलाया, लेकिन सभी बकरे को तृप्त करने में असफल रहे | बकरे को कितना ही खिलाआ-पिलाओ, पर जब सम्राट परीक्षा के लिये घास डाले तो वह पुनः खाने लगे | उसी नगर में एक तत्त्वज्ञानी व्यक्ति रहता था । वह बकरे को ले कर जंगल में गया । वहाँ उसे दिन भर भूखा-प्यासा रखा, न कुछ खाने को दिया, न पीने को । शाम को भूख-प्यासे बकरे को लेकर वह राज्य दरबार में सम्राट के समक्ष उपस्थित हुआ और आत्म विश्वास से कहा- सम्राट! आपका बकरा अब तृप्त है। तृप्त था नहीं, उसका घुसा-घुसा पेट ही दर्शा रहा था कि वह भूखा है, पूर्ण अतृप्त है। पर वह व्यक्ति बोला महाराज मैंने इसे तृप्त कर दिया है, अब यह पूर्ण तृप्त है | कुछ भी नहीं खायेगा। आप चाहें ता परीक्षा भी कर सकते हैं। सम्राट ने उसके सामने घास डाली लेकिन देखा कि बकरा घास खाना तो दूर, सूंघ भी नहीं रहा, उस तरफ देख भी नहीं रहा । सम्राट आश्चर्य चकित रह गया और उस व्यक्ति से बाल आप विजयी रहे, वचनानुसार मैं आपको आधा राज्य देता हूं लेकिन आप इतना अवश्य बता दो कि आपने इस कभी तृप्त न होने वाले बकरे को तृप्त कैसे किया? __ वह व्यक्ति बोला – मैं इसे जंगल में ले गया। वहाँ इसने घास देखी तो खाने को उद्धत हुआ लेकिन जैसे ही इसने घास खाने को मुँह खाला तो मैंने इसक मुँह में एक लकड़ी मारी। जब-जब इसने घास खाने को मुँह खोला, घास खाना चाहा तब-तब मैंने इसके मुँह में लकड़ी मारी । दिन में कई मर्तबा ऐसा हुआ जिससे इसकी धारणा बन गई कि अगर मैं घास खाने आग बढ़ा ता मेरी पिटाई होगी, मुझे मार पड़ेगी। इसकी मजबूत धारणा बन गई है कि घास खान से मार पड़ती है, यही कारण है कि अब वह घास नहीं खा रहा है, बिना (411)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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