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________________ कम लगते हैं | साहूकार बाला तुम्हारी कार कितनी भी अच्छी क्यों न हो, पर वह कहीं भी टक्कर मार सकती है। तुम्हारी कार में कितने भी गुण हों, अगर ब्रेक ठीक नहीं हैं तो वह किसी काम की नहीं है | ठीक इसी प्रकार, व्यक्ति यदि देखने में कितना भी सुंदर क्यो न हो, यदि उसके जीवन में संयम नहीं है, तो उसकी कोई कीमत नहीं है। संयम से ही जीवन महान् होता है | अतः सभी को अपने जीवन में शक्ति-अनुसार इन्द्रिय-संयम एवं प्राणी-संयम का पालन अवश्य करना चाहिये | यदि जैन कुल पाकर भी कोई श्रावक, श्रावकों के 12 व्रतों को नहीं पालता अर्थात् संयम को धारण नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ है। यदि संयम का महत्त्व अधिक नहीं होता तो बड़-बड़े राजा, महाराजा, चक्रवर्ती और इन्द्र भी मुनियों को नमस्कार क्यों करते? पूर्ण संयम तो मुनिराजों के ही होता है, किन्तु गृहस्थ भी (पापों का एकदेश त्याग करके) एक-देश-रूप संयम का पालन करते हैं। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों के सेवन से परलोक में तो दुःख मिलता ही है, किन्तु इनका सेवन करने से इस जन्म में भी अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं | हिंसक, क्रूर, झूठे, चोर या कुशीली लोग अच्छे लोगों की नजर में निंद्य, पापी गिन जाते हैं और विश्वास के पात्र नहीं रहते । एक पौराणिक कथा (इतिवृत्त) है किसी समय विदेह क्षेत्र में एक मुनिराज सर्प सरोवर के निकट वन में आये | एक देव युगल ने उनक दर्शन करके संतुष्ट होकर मुनिराज से धर्मोपदेश देने की प्रार्थना की, तब मुनिराज ने सम्यग्दर्शन, सत्पात्र, दान, श्रावक धर्म व मुनिचर्या आदि का उपदेश दिया। देव बोला-भगवान आपने किस कारण से मुनि दीक्षा ली है, सो कृपा कर (404)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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