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________________ 2. 3. इनकी रक्षा के लिये हमें अपनी प्रत्येक क्रिया विवेक पूर्वक करनी चाहिये। जैसे आवश्यकतानुसार भूमि के अलावा अन्य क्षेत्र में जाने की सीमा कर लें। नाखून आदि से व्यर्थ जमीन न खोदें । 5. जल कायिक जीव उसे कहते हैं, जल ही जिनका शरीर है । इनकी रक्षा के लिये दिन में इतने जल से अधिक का उपयोग नहीं करेंगे इसकी सीमा कर लें । व्यर्थ में आवश्यकता से अधक जल प्रयोग में न लायें। नल खुला न छोड़ें। जल को छानकर ही उपयोग में लायें । अग्नि कायिक जीव उन्हें कहते हैं जिनका शरीर अग्नि का ही है । इनकी रक्षा के लिये अनावश्यक अग्नि न जलायें । कूड़ा-करकट के ढेरों में अग्नि न लगायें, बिजली खुली न छोड़ें | 4. वायु कायिक जीव वह हैं, जिनका शरीर ही वायु है। इनकी रक्षा के लिये पंखे खुले न छोड़ें, यदि बन सके तो पंखा न चलायें, जहाँ धीमी हवा से काम चल सकता हो तो फुल स्पीड पर पंखा न खोलें । यही कारण है कि जो उत्तम संयम के धारी हैं, वे कभी अपने हाथ से न तो पंखा चलाते हैं और न आदेश ही देते हैं । वनस्पति कायिक जीवों की संख्या 10 लाख है। यदि हम 50-100 सब्जियों का ही उपयोग करने की सीमा बना लं, तो शेष वनस्पतियों के उपयोग करने के दोष से बच सकते हैं । संयम के दूसरे भाग प्राणी संयम का पालन करने के लिये हम ध्यान रखें, हमारे माध्यम से किसी जीव को कष्ट न हो। हम अपनी 402
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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