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________________ अपने स्वरूप को न समझना और इन्द्रिय-विषयों में ही उपयाग का बनाये रहना, यह बहुत बड़ा अंधकार है | केले के खम्भे में भले सार निकल आवे, परन्तु इन विषय-भोगों में कोई सार नहीं है । ये जगत क प्राणी कैस आत्मतत्त्व में बढ़ें, कैसे ज्ञान की आराधना में बढ़ें, कैस विकल्पों से बचें इस ओर दृष्टि न करके विषय-कषाय में ही अपना अमूल्य जीवन बर्बाद कर रहे हैं। जिस मनुष्य-शरीर स हमें मोक्ष प्राप्त की साधना करनी चाहिये थी, उसे विषय-भोगों में बरबाद कर रहे हैं। पर ध्यान रखना, इन इन्द्रिय-विषयों से आजतक किसी का भी भला नहीं हुआ। यह विषयों का भोग भोगते समय तो भला लगता है, परन्तु इसका परिणाम नियम से खराब होता है | विषय-भागों की इच्छा से सुख कभी नहीं मिल सकता | सीता न स्वर्ण मृग को प्राप्त करने की, इच्छा की तो उन्हें रावण क चंगुल में फँसना पड़ा। रावण ने सीता के अपहरण की इच्छा की, तो उसे नरक जाना पड़ा | अग्नि के स्पर्श से शीतलता कैसे संभव है? य इन्द्रिय-विषय तो दुःख के ही कारण हैं | एक बार माली ने राजा के लिय फूलों की अच्छी सुन्दर शैय्या तैयार की। अभी राजा को आने में देरी थी, इसलिये माली न सोचा इस पर थोड़ा लेट कर देख लें कैसा लगता है। वह उस पर लेट गया। दिन भर का थका-हारा था, सा उसे लेटत ही नींद आ गई | राजा आया और माली को अपनी सज पर सोया देखकर बड़ा क्रोधित हुआ। मेरे आने से पहले यह माली मेरी सेज पर लेटता है। उसने बेंत उठाया और माली की पिटाई शुरू कर दी | माली को जब तीन चार बेंत पड़े तो वह हँसने लगा। राजा रुक गया और बोला तू हँसता क्यों है? माली बाला-मैं इसलिय हँस रहा हूँ कि मैं तो बस आज ही इन फूलों की सेज पर सोया था, तो मेरी बेंतों से पिटाई, (387)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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