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________________ भोगने के पहले क्लेश, भोगने क समय भी क्लेश और भोगने के बाद भी क्लेश | खूब अनुभव कर लो, यदि क्लेश नहीं चाहिये तो इन इन्द्रिय-विषयों में प्रवृत्त होने की कोशिश न करो | ये कोई शान्ति के उपाय नहीं हैं। ये ता जैसे सुख वैसे दुःख | सिर्फ नाम बदल गया। जैसे नागनाथ कहो या साँपनाथ कहो, काटेंगे दोनों। कहीं नागनाथ कह देने स वह मेहरबानी नहीं करेगा। ऐस ही ये इन्द्रिय सुख हैं, चाहे सुख कहो चाहे दुःख कहो, परन्तु क्लेश दोनों में है। भले ही लोग कहत हैं कि 'कु बुरा कहलाता है और 'सु' अच्छा, पर 'कु' की जगह 'सु' रख देने से फायदा क्या हुआ? जैसे एक बार कोई पढ़ा लिखा लड़का था, वह हिन्दी अच्छी जानता था, उसकी सगाई की बात हुई | लोग लड़का देखने आये, तो देखने वालों ने उसके आदर के लिये कहा-आइये, कुँवर साहब! बैठिये, तो लड़के ने सोचा कि ये तो मुझ कुँवर साहब कह रहे हैं। 'कु' का अर्थ तो खराब होता है। तो झट बाल उठा कि साहिब में कुँवर साहब नहीं हूँ मैं तो अच्छा अर्थात् सुवर साहब हूँ | तो ठीक ऐसे ही चाहे सुख कहो, या दुःख कहो । याने 'सु' की जगह 'कु' लगा दो तो उसमें फायदा क्या हुआ? ये सुख-दुःख दोनों हय हैं । इन्द्रिय सुख ता आत्मा का अहित करने वाले ही हैं, अतः सर्वथा हेय ही हैं | देखो, भैया! कैसी दयनीय दशा बन रही है कि अपना परमात्म स्वरूप अपने अन्तः विराजमान है, जिसके प्रसाद स अनन्तकाल के लिये समस्त संकट छूट जायेंगे। यह अज्ञानी संसारी-जीव उसको तो जानता नहीं और इन इन्द्रिय-विषयों में मोहित हो गया। यह इसकी सबसे बड़ी भूल है | इससे बढ़ कर भूल और क्या कहें? किसी मनुष्य के आगे एक ओर खली का टुकड़ा रख दिया जाय और एक आर हीरा जवाहरात रख दिया जाय कि भाई! तुम इन दोनों चीजों में से (385)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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