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________________ सामने बड़ी प्रशंसा की । राजा ने दोनों को दरबार में बुलाया। रानी ने अपने कुबड़े पति का बड़ा आकर्षक और रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। राजा ने बड़ी गम्भीरता से रानी की संगीत कला देखी और रानी को पहचानते ही उसे संसार के स्वरूप का ज्ञान हो गया । बस, फिर क्या था। वह उसी समय इस मोह रूपी पिंजड़े को तोड़कर सीधे जंगल की ओर चला गया और उसने संसार से नाता तोड़कर अपने आप से ही नाता जोड़ लिया । - इस संसार में कोई किसी का नहीं है। सभी जीव अपनी-अपनी विषय विभूति के लिये साधन जुटाकर अपनी कषायों का पूर्ण कर रहे हैं। यह संसार तो मोह और कषायों का एक तमाशा है। हम व्यर्थ ही धन व भोगों के लिये दिनरात परिश्रम करके अपनी आत्मा का अहित कर रहे हैं। राजा ने पहले भोगों के लिये राज्य छोड़ा था। अब उसे भागों स घृणा हो गई और दिगम्बार दीक्षा धारण कर ली। __ श्रीमद रायचन्द्र जी गुजरात में हुये हैं, वे कहा करते थे कि ये तीन बातें सदैव ध्यान में रखनी चाहिये । 1. काल सिर पर सवार है | 2. पांव रखते ही पाप लगता है। 3. नजर उठाते ही जहर चढ़ता है | काल सिर पर सवार है, यदि यह ध्यान हमें बना रहे, तो फिर हम कभी भी गाफिल नहीं हो सकते। चक्रवर्ती भरत क दरबार में प्रातः काल रोज घंटा नाद होता था। और 'पहरेदार वर्धतेभयम्वर्धतेभयम्' कहा करते थे। चक्रवर्ती स पूछा गया कि आप जैसे सम्राट जहाँ पर हों, वहाँ भय वाली बात कैसे? तो चक्रवर्ती ने कहा-मौत का भय बढ़ रहा है और यही दृष्टि उन्हें निरन्तर आत्मान्मुखी (383)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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