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________________ एक ब्रह्मगुलाल नामक कलाकार था | वह स्वांग बनाने का खेल खेलता था, कभी वह राम का, कभी कृष्ण का, कभी सीता का, कभी रुकमणी आदि का मन मोहने वाला, लोगों को चकित करने वाला रूप धारण करता था | जवानी का जोश और यह रूप देखकर लोग चकित हो जाते । एक दिन राजा अपने महल में सभा का जोड़कर बैठे थे | उस सभा में यह चर्चा चली कि शेर की भांति गरजने वाला शक्ति सम्पन्न शेर का रूप कौन धारण कर सकता है | ब्रह्मगुलाल ने कहा कि यह स्वांग बनाना कठिन नहीं है लेकिन किसी की चोट न लग जाये इससे मैं डरता हूँ | राजा ने एक खून करने की इजाजत दे दी। थोड़ी ही देर में ब्रह्मगुलाल शेर का रूप धारण करके गरजता हुआ आया। वहीं पर आँगन में एक बकरी का बच्चा बंधा था | राजकुमार ने कहा-अरे शेर! आँगन में कौन खड़ा है? तू उसे भी नहीं मार सकता तो वन में क्या करता होगा? तू तो शेर नहीं कोई गीदड़ है। तरे जन्म दाता का धिक्कार है। राजकुमार के इन वचनों को सुनकर शेर के मन में क्रोध आ गया । गुस्स में पूंछ हिलाने लगा और आँखों में खून खौलने लगा। उसन पंजा उठाकर राजकुमार पर छलांग लगा दी। आस-पास के लोग भय क कारण भाग गये | पंजा लगते ही राजकुमार गिर कर मर गया । राजा विचार करने लगा, जो कर्म में लिखा था, वह हो गया। संसार तो वृक्ष की छाया के समान है। 'अब तुम जैन मुनि बनकर कोई हितकर उपदेश दो ।' ब्रह्मगुलाल घर पर पहुँचे, सबको बताया कि पापरूपी कर्मों के रोगों को काटने का अब समय आ गया है | उसने मित्र मथुरालाल से भी कहा अब हम महाव्रत धारण कर मुनिराज का वेश धरेंग | सबने सोचा कि भोगों का त्याग कठिन है | उसने मन में बारह-भावना भायी और प्रातः जिन प्रतिमा के सामने (376)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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