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________________ इसी प्रकार रसना इन्द्रिय के वश में हाकर मनुष्य भी अनेक तरह के स्वादिष्ट भोजन के लालुपी बन जात हैं। उस समय उनका भक्ष्य-अभक्ष्य पदार्थों का विवेक शिथिल हो जाता है। भोजन भट्ट बनकर अपनी धन हानि तथा शारीरिक हानि कर बैठते हैं | डाक्टर को मना करना पड़ता है कि नमक नहीं खाओगे, घी, तेल नहीं खाआगे तब वे बहुत दुःखी होते हैं | बहुत से जिह्वा लोलुपी मनुष्य तो फिर भी नहीं मानते और अपना सर्वस्व नष्ट कर देते हैं। संयमी, व्रती, त्यागी मनुष्य भी यदि रसना इन्द्रिय पर विजय प्राप्त न कर, तो वह भी अपने संयम को सुरक्षित नहीं रख सकता, वह अनशन, ऊनो दर, वृत्ति परिसंख्यान, रस परित्याग, आदि तपों का ठीक समुचित आचरण नहीं कर सकता | इस कारण रसना-इन्द्रिय का विषय भी स्पर्शन इन्द्रिय के समान महान प्रबल है। यदि भाजन में एक वस्तु की इच्छा घटाई और दूसरी वस्तु की बढ़ाई तो इसे रसना-इन्द्रिय संयम नहीं कह सकते । घ्राण इन्द्रिय के विषय में अचेत होकर भौंरा अपने प्राण खो बैठता है। भौंरा अपने डंक से बांस में भी छेद कर देता है, किन्तु कमल की सुगन्ध का लोभी भौंरा कमल में बन्द होकर उसमें से बाहर निकलने के लिय कमल की कामल पंखुड़ी में डंक नहीं मारता। मनुष्य भी घ्राण इन्द्रिय की इच्छा पूर्ण करने के लिये सुगंधित फूल, कपूर, तेल, इत्र आदि लगाते हैं। लखनऊ के नवाब इत्र का छिड़काव करके महफिल लगाया करते थे। एक बार बज्रदन्त चक्रवर्ती अपनी राज सभा में बैठे थ। माली सहस्त्र-दल-कमल लेकर दरबार में आया। चक्रवर्ती ने जैसे ही उस (371
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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