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________________ भागेगा? वह बोला मुझे ही भागना पड़ेगा। तो क्या तुम दुःख भोगना चाहते हा? नहीं महाराज मुझे भी कुछ कल्याण का मार्ग बता दीजिये। साधुजी बोले-पाँच पाप हाते हैं-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, इनमें से तुम कौन-सा पाप छोड़ सकते हो। उसने कहा-महाराज मैं हिंसा तो छोड़ नहीं सकता, क्योंकि शिकार के बिना मैं रह नहीं सकता, जुआ खेलता हूँ इसलिये चारी कैसे छोड़ दूँ | कुशील क बिना ता मुझे अच्छा ही नहीं लगता और परिग्रह के बिना ये सब कार्य कैसे होंगे? अतः परिग्रह भी नहीं छोड़ सकता | हाँ झूठ बोले बगैर काम चल जायगा, मैं झूठ बोलना छोड़ सकता हूँ | उसने साधु जी से झूठ न बोलने का नियम ले लिया । अब देखिये एक सत्य व्रत के लेने से उसका जीवन किस प्रकार परिवर्तित होने लगा | वह जुआ खेलन जा रहा था, किसी ने कहा-कहाँ जा रहे हो? अब वह झूठ न बोलने क कारण कुछ न कह सका और उस दिन जुआ खेलने नहीं गया। व्यसन उन्हें ही कहते हैं जिन्हें कोई कह के नहीं कर सकता | इन्हें करते हुये भी उसे लोक निन्दा व अपयश का भय बना रहता है | उस दिन वह शराब पीने, वेश्या के यहाँ, चोरी करने, कहीं भी नहीं जा सका | धीमे-धीमे कुछ ही दिनों में उसकी सारी बुराईयाँ दूर होने लगी, जिससे उसे जीवन में शान्ति महसूस हाने लगी। घर व समाज वाले लोग भी उसे चाहने लगे। वह बड़ा प्रसन्न हुआ और उन्हीं महात्मा जी के पास जाकर बोला-महाराज आपके एक व्रत का पालन करने से मेरा तो जीवन ही बदल गया, अब तो मैं हमेशा आप के ही पास रहना चाहता हूँ, आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिये। मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है। यदि हमने इसे पाकर वृथा गँवा दिया तो समझो हमने कौआ का उड़ाने के लिये मणी का फेक दिया, (341)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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