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________________ लायक कोई सेवा हो तो बताएं। यह सुनकर राजा विस्मित रह गया, क्योंकि वह सेनापति और सिपाही के साथ बीती घटनाओं से परिचित था । राजा ने कहा- आप तो नेत्रहीन हैं, फिर भी आपने मुझे, मेरे सेनापति और सिपाहियों को कैसे पहचाना? इस अंधे व्यक्ति ने कहा- राजन! मैं आँखों से अवश्य अंधा हूँ, परन्तु मेरे कान सिर्फ शब्दों को सुनकर व्यक्ति की पहचान कर लेते हैं । मैंने सिर्फ उनकी वाणी से ही उन्हें पहचान लिया था । सबसे पहले मेरे द्वार पर आने वाले दो सिपाही थे, क्योंकि उनकी वाणी में रूखा आदेश था । जिससे मैंने पहचान लिया कि वे निम्न स्तर का जीवन जीन वाले व्यक्ति है । जब दूसरी बार सेनापति ने पानी की माँग की तो उनके रोबील स्वर से मैंने पहचान लिया कि यह सेनापति होगा, जो अहंकार पूर्ण जीवन जीने का आदी है । जब आपकी वाणी में इतनी माधुर्यता और कोमलता देखी, तो मैंने पहचान लिया कि जिस वृक्ष में फल लग जाते हैं, वह झुक जाता है । इसी प्रकार आपकी विनम्र वाणी से मैंने पहचान लिया कि आप राजा हैं । ज्ञानी पुरुष कहते हैं- मनुष्य की पहचान उसकी वाणी से होती है। सभी को सदा मीठी वाणी बोलना चाहिये । वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय । । हमें सदा ऐसी वाणी बोलना चाहिये जो शत्रु के हृदय में भी आनन्द का रस घोल दे । हमारा वचन व्यवहार ऐसा होना चाहिये जिससे खुद का भी विकास हो और दूसरों का भी विकास हो । असत्यता से तो अपना अहित ही होता है । अतः जो सच्चे पुरुष होते 337
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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