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________________ स्नेह संबंध के कारण भी प्रायः झूठ बोला जाता है। राजा वसु के द्वारा बोला गया झूठ भी अपनी माँरूप गुरुपत्नी के आत्मीय स्नेह के कारण ही था। गुरु क्षीर कदम्ब का पुत्र पर्वत, सेठ पुत्र नारद और राजपुत्र वसु इन तीनों ने गुरु क्षीरकदम्ब स शिक्षा ग्रहण की थी। गुरु के दीक्षित हो जाने पर कालान्तर में गुरुपुत्र पर्वत ने उपाध्याय का पद संभाला। पढ़ाते समय एक दिन उसने 'अजैर्यष्टव्यम्' का अर्थ, यज्ञ में अज अर्थात् बकरे को होमना चाहिय, ऐसा अर्थ निकाला। जिस अर्थ को सुनकर सठ पुत्र नारद ने कहा कि गुरु ने इस संदर्भ में अज का अर्थ बकरा नहीं, किन्तु 'पुराना धान्य' प्रतिपादित किया था। किन्तु पर्वत न नारद की बात नहीं मानी । और वचन बद्ध हो गये कि इसका फैसला राजा वसु से करा लो | जिसका झूठ होगा उसे जिव्हा खण्डित दण्ड दिया जायेगा। बात गुर्वानी तक पहुँची। वह भी शास्त्र की ज्ञाता थी। उसने अपने बेटे पर्वत क झूठ को समझ लिया | नारद सही कह रहा है, वैसा ही अर्थ तुम्हारे पिता जी ने समझाया था, उसे स्वीकार लेना चाहिये ऐसा माँ ने समझाया। पर पर्वत तो जिद पकड़ गया था। फिर क्या? पुत्र स्नेह के कारण माँ ने राजा वस का सारी बात बता दी और अपने अनग्रह के बदले में पर्वत का पक्ष लेने को कहा। निर्धारित समय पर सब एकत्रित हुए | क्या सच? क्या झूठ? इसे सुनने के लिये काफी लोग एकत्रित हो गये । और निर्णायक दौर में सिद्धांत प्रतिपादन के नाजुक क्षणों में, जबकि अहिंसा या हिंसा की परम्परा चलने का सवाल था। राजा वसु जो न्याय के सिंहासन पर बैठता था, झूठ बोल गया और अज का अर्थ पर्वत के कथनानुसार ही बकरा कह दिया । बस फिर क्या? इस घोर पाप से, असत्य कथन से, वसु झूठ सती नरक पहुँचा स्वर्ग में नारद गया | वसु का सिंहासन धसा और रसातल में चला गया। यह (325)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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