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________________ तो भी कोई उसका विश्वास नहीं करता। संसार का व्यवहार, व्यापार, सत्य के आधार पर ही चलता है । सत्यवादी मनुष्य बिना हस्ताक्षर किये तथा बिना लिखा-पढ़ी के लाखों करोड़ों का लेन-देन किया करते हैं, जबकि असत्यवादी के साथ बिना लिखा-पढ़ी के कोई भी व्यवहार नहीं करता । अतः अपना विश्वास बनाये रखने के लिये सदा सत्य ही बोलना चाहिये | और यदि सत्य बोलने से दूसरों का अहित होता हो, तो वहाँ चुप रह जाना चाहिये । सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । नानृत् च प्रियं ब्रूयात्, येषा धर्मः सनातनः । । सत्यं ब्रूयात् सत्य बोलो, प्रियं ब्रूयात् प्रिय बोलो, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् अप्रिय सत्य मत बोलो और नानृत च प्रिंय ब्रूयात् प्रिय झूठ भी मत बोलो। यही सनातन धर्म है, सत्य धर्म है। यदि आपने सत्य बोला और आपका बोला गया सत्य प्राणघातक हुआ, किसी के जीवन का अपवाद फैलाने वाला हो, किसी के जीवन को ही बर्बाद करने में कारण बन गया, तो बोला गया वह सत्य भी झूठ के बराबर है । क्योंकि वह घातक है, अहितकर है। कहा गया है कि प्राणी रक्षा के लिये बोला गया झूठ भी सत्य के बराबर होता है। गाय भागी जा रही है और पीछे से कसाई खंजर लिए दौड़ रहा है । आपने अपनी आँखों से देखा है कि गाय दौड़ी जा रही है, कसाई ने आकर के पूछा कि हमारी गाय यहाँ से निकली है? और आप सत्यवादी बनकर कह दें हाँ-हाँ गाय यहाँ से निकली है, तो कसाई आगे बढ़ेगा और पकड़कर मार देगा। ऐसी स्थिति मं तुम्हारा बोला गया सत्य भी झूठ हो गया, क्योंकि प्राणी का घात हो गया । और यदि देखकर भी आप प्राणिरक्षा के भाव से झूठ बोल देते हैं कि मैंने नहीं देखी, शायद 318
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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