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________________ एक व्यक्ति के दरवाजे से पड़ोसी की नाली बह रही थी। उसने कहा भैया | यह नाली तो नहीं बहनी चाहिए | यह ठीक नहीं। उसने कहा भैया, नाली तो यहीं से बहेगी। भैया! देखो पंचो को बुला लीजिए और पंच यदि कहें कि यह नाली अच्छी है तो बहने दना, और व कहें कि नाली गंदी है तो बंद कर देना। वह कहता है बिल्कुल ठीक है। पंच परमेश्वर हैं। पंचों की बात तो सिर माथे रखू गा, लेकिन खबरदार, नाली वहीं से बहेगी। तो क्या काम के वे पंच और क्या काम की वह पंचायत? इसी प्रकार अनादि काल से तुमने पंच परमेष्ठी का माना, पंच परमेष्ठी की पूजा की, लेकिन कषाय रूपी नाली जब बही तो वहाँ से बहाई, जहाँ से बहती आ रही थी। कुत्ते की पूंछ को बारह वर्ष पुंगेरी में डाली और जब निकली तो टेढ़ी की टेढ़ी। कई बार तुम्हें सच्चे मार्ग का उपदेश मिल जाता है और जब तुम इस सच्चे मार्ग के उपदेश से छूटोगे तो वही करोगे जो करते आए हो। ___ एक व्यक्ति तीन दिन से रो रहा है। एक ने पूछा भैया! क्यों रो रह हो? बोले-भैया! मैं तीन दिन से कोटा की ट्रेन में बैठा हूँ, जाना दिल्ली है। 'अरे पागल! तुझे तीन दिन पहले पता चल गया था कि कोटा की ट्रेन है, तो उसी दिन क्यों नहीं उतर गया? यही हम कर रह हैं। हमने टिकट तो दिल्ली का कटा लिया और ट्रेन कौन-सी है? कोटा की, और कब से रो रहे हैं? तीन दिन हो गये | अनन्त भव हो गए रोते-रोते कि मैं संसार में भटक गया हूँ | मैं निर्जन वन में भटक गया हूँ | मैं संसार में रुल रहा हूँ | कब से ज्ञान हुआ है तुझे? जब से खबर है, बरसों हो गए ज्ञान हुए कि यह संसार के विषय-कषाय हेय है, फिर भी उन्हीं में झंझावात कर रहा है | तो अभी तुझ ज्ञान हुआ नहीं है। गलत ट्रेन में बैठने वाला समझ जाता है कि मुझे इससे (313)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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