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________________ वासनाप्रेमी थे। देखिये-तुलसीदास जी के ऊपर स्त्री के लोभ में क्या घटना घटी। उनकी नवविवाहिता स्त्री जब उपने पीहर चली गई, तो उससे मिलने की उनको तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई, सो रात्रि में ही चल दिये ऊबड़-खाबड़ अटपटी पगडंडियां से | वर्षा का समय था। रास्ते में एक नदी पड़ी। उसमें उतरते हुए किसी लकड़ी के ही ढूँठ को नाव समझकर उस पर बैठकर किसी तरह नदी से तैरकर उस पार पहुँचे । जब घर पहुँचे, ता खिड़की से चढ़ने की बात सोची । वहाँ कोई रस्सी लटक रही थी। उसका पकड़कर चढ़ गये | वह रस्सी नहीं थी, बल्कि सर्प था। खैर, किसी तरह ऊपर पहुँचे, स्त्री से मिले व अपनी सारी कथा कह सुनाई | तब स्त्री ने उत्तर दिया । जैसा प्रेम है नारि से, वैसा हरि से होय । चला जाय संसार से पला न पकडे कोय ।। अस्थि चर्ममय देह मम, तामे ऐसी प्रीति | वैसी श्री रघुनाथ से, होती न तो भव भीति ।। देखिय, एक स्त्री के लोभ में पड़ कर वे कितनी परेशानी में पड़े? अपने शरीर की सुध-बुध भी भूल गये । लेकिन जब स्त्री की फटकार पड़ी, तो लौट पड़े उल्टे पाँव, चल गये जंगल की ओर तथा वहाँ की भगवद्-भक्ति, और रच डाला 'रामचरित मानस' | इसी प्रकार हमारा यह आत्मा अत्यन्त भिन्न पर-पदार्थों के लोभ में आकर उसके पीछ लगा हुआ है । ऐसी ही तन्मयता से यदि अपने आपके परमपावन स्वरूप की ओर लग जाये, तो इसमें संदेह नहीं कि यह कर्मबन्धन से छूटकर अपने निज गृह अर्थात् सिद्धालय में पहुँच जाय। (278)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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