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________________ हो सकता है | गृहस्थी के बीच में रहता हुआ भी व्यक्ति यदि संतोष की समता की साधना करता है, तो वह सुखी हो सकता है। संताष और संतुष्टि की साधना जीवन को सुखी बनाने का सूत्र है। लोभी व्यक्ति तो सदा अभाव में जीता है। संतुष्ट वह है, जो केवल उसका मूल्यांकन करता है जो उसके पास है | असंतुष्ट वह है, जो उसकी तरफ भागता है जो उसके पास नहीं है। हजारपति लखपति बनने की चाह रखता है, लखपति करोड़पति बनने की कामना करता है, कराड़पति अरबपति बनने का सपना देखता है और अरबपति सारी दुनिया का सम्राट बनने की लालसा रखता है | व्यक्ति की यह अधिक पाने की लालसा ही दुःख का कारण है। आचार्य गुणभद्र महाराज ने लिखा है आशागर्तः प्रतिप्राणियस्मिन विश्वमणूपमम् । कस्यकिं कियदायाति वृथा वो विषयेषिता ।। यह आशारूपी गर्त प्रत्येक प्राणी के सामने खुदा है। जिसे संसार के समस्त वैभव स भी भरा नहीं जा सकता। इस आशा रूपी गर्त को जैस-जैसे भरा जाता है, वैसे-वैस ही गहरा हाता जाता है। पृथ्वी के अन्य गर्त भर देने से भर जाते हैं, पर यह आशागर्त भरने से और भी गहरा होता जाता है। जैसे किसी व्यक्ति का 1000 रुपये की आशा थी, हजार रुपये उसे मिल भी गये पर अब आशा दस हजार की हो गई। अर्थात् आशारूपी गर्त पहल स दस गुना गहरा हो गया। भाग्यवश दस हजार भी मिल गय पर अब एक लाख की आशा हा गई । अर्थात् आशारूपी गर्त पहले से सौ गुना हो गया । इसे सभी लोग प्रतिदिन अनुभव कर रहे हैं। व्यक्ति को कितना भी मिल जाये पर कुछ-न-कुछ (257
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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