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________________ उसने नम्र भाव से आदि से अन्त तक का समस्त वृतान्त राजा को सुना दिया । राजा समझ गया जो दूसरे को ठगने का प्रयास करता है, वह स्वयं ठगाया जाता है। यदि व्यक्ति दूसरे का बुरा सोचता है, तो बुरा स्वयं का होता है। जो दूसरों के लिये मायाजाल में फंसाने का प्रयत्न करता है, वह स्वयं उसमें फँस जाता है | जो दूसरों को गड्ढा खोदता है, वह स्वयं उसमें गिरता है। पर का अनिष्ट करके स्वयं के भले की भावना रखना आकाश पुष्प की भांति व्यर्थ है। अतः यदि किसी का भला न कर सका, तो दूसरों का बुरा कभी मत करो। जब विभीषण रामचन्द्र जी के पास आया, तो सभी ने विरोध किया कि यह विराधी का भाई है, हमें कभी भी धोखा दे सकता है। तब रामचन्द्र जी ने कहा था-मैं शरणागत को निराश नहीं कर सकता | धोखा देना पाप है, धाखा खाना पाप नहीं है। प्रायः देखा जाता है कि छल-कपट करके वैभव इकट्ठा करन वालों का अंत में पतन होता है, दुनिया की नजरों स गिर जाते है तथा जगत उन्हें ठुकरा देता है। जीवों के मन, वचन और काय की सरलता ही उभय लोक में शान्ति प्रदान कराने में सहायक हाती है, इसके विपरीत वक्रता या कुटिलता दुर्गति का कारण होती है। अतः सभी को बाहर और भीतर सरलता अपनानी चाहिय, क्योंकि सरलता ही साधुता का लक्षण है। श्री गुणभद्र स्वामी ने लिखा है निविड़ मिथ्यात्व रूपी अंधकार से व्याप्त इस माया रूपी महागड्ढे से हमेशा डरना चाहिय, क्योंकि इसमें छिपे हुए क्रोध आदि विषम सर्प दिख नहीं सकते हैं। दूसरों को धोखा देकर कोई भी सुखी नहीं रह सकता | एक कहानी आती है (232)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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