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________________ मनस्ये कं वचस्ये कं कर्म राये कं महात्मनाम् । मनस्यन्यत् वचस्यन्यत् कर्मरायन्यत् दुरात्मनाम् ।। मन में कुछ, वचन में कुछ और काय से कुछ, इसे कहते हैं मायाचारी, यह दुष्टों का लक्षण या स्वभाव है | मन में वही, वचन में वही और शरीर से उसी प्रकार की चेष्टा करना, इसे कहते हैं आर्जव धर्म, यह सन्तों का स्वभाव है | आर्जव धर्म के लिये कहा है'मन में होय सा वचन उचरिये, वचन हाय सो तन सों करिये ।' मन, वचन और काय की सरलता का अर्थ है-हमारा मन इतना पवित्र हा कि जो मन में आये, उसे वाणी से कह सकें और जो वाणी से कहें, उस शरीर से करने में किसी की भी क्षति न हो। हमारी अपनी भी नहीं और दूसरों की भी नहीं | यह अर्थ है मन, वचन, काय की सरलता का। ऐसा नहीं है कि जो मन में आया गड़बड़-सड़बड़, वह वचन से कह दिया | जैसे आपक मन में आ रहा है कि आप किसी को धक्का दें और आपने धक्का दे दिया, क्योंकि आपने ही तो कहा था कि सरलता होना चाहिए। जो मन में आया कर दना चाहिये । यह अर्थ नहीं है सरलता का। हमारी सरलता गड़बड़ा गई है | थोड़ा दिखावा, थोड़ा प्रदर्शन, बनावटीपन-ये सारी चीजें हमारे जीवन में शामिल हो गई हैं। इन चीजों से हम कैसे बचें? दूसरों के साथ छल करन की, उन्हें धोखा देने की, ठगने की एक आदत हो गई है, उसे हम कैसे बदलें? यदि हमारी यह आदत छूट जावे तो सरलता तो अपना स्वभाव है। यही आर्जव धर्म है। हमारा व्यवहार सरल व मधुर होना चाहिय! माता-पिता का जैसा आचरण होता है, वैसे ही संस्कार बच्चों में भी आ जात हैं। बुन्देलखण्ड में एक कहावत है “जाके जैसे बाप-मतारी, वाके वैसे लड़का ।” (2010
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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