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________________ समझना चाहिय | सागरदत्त ने अपनी पुत्री सरला का विवाह रामदत्त के साथ कर दिया। सरला बड़े धार्मिक विचारों की थी। उसने ससुराल में जाकर देखा कि वहाँ विषयभागों की तो कोई कमी नहीं है, पर घर के सभी सदस्य धार्मिक क्रियाओं स अनभिज्ञ हैं। वह मन-ही-मन उपाय सोचने लगी कि इन लोगों को धर्म के मार्ग में कैसे लगायें। शुरू में तो उसे कुछ कठिनाई का सामना करना पड़ा, परन्तु धीमे-धीमे उसने अपने पति, जिठानी एवं जेठ का धार्मिक बना लिया। उसकी सास अभी जिनधर्म के तत्त्वों में संशयालु थी और ससुर को धर्म का नाम विष के समान प्रतीत होता था | एक बार उस सेठ के घर की ओर एक दिगम्बर मुनिराज का आगमन हुआ। साधु महाराज को आत देखकर सरला ने उनका पड़गाहन कर लिया तथा बड़ी भक्ति से आहार देकर अपन को धन्य मानने लगी। मुनि महाराज की युवावस्था देखकर और चहरे के तेज से सरला के हृदय में कई प्रश्न उठ आये | उसने धर्मभाव से पूछा-मुनिवर अभी तो सवरा ही है, इतनी जल्दी क्यों की? बालमुनि ने उसकी धार्मिक रुचि देखकर उत्तर दिया-बहन! मुझे समय का पता नहीं चला। ससुर अभी दुकान से लौटे ही थे। मुनिराज का घर में दखकर प्रथम तो उन्हें क्रोध आया, फिर कौतुकवश वे किवाड़ के पीछे जाकर खड़े-खड़े इनका वार्तालाप सुनने लगे। दोनों की बात सुनकर उनका दिमाग चक्कर खा गया। उसने मन-ही-मन सोचा- दोनों कितन मूर्ख हैं? सूर्य सिर पर चढ़ गया है और बहू कह रही है अभी तो सवेरा ही है तथा इसका गुरु उत्तर दे रहा है कि मुझे समय का पता नहीं चला। दोनों के प्रश्नोत्तर अभी चल ही रहे थे। मुनिराज ने सरला से पूछा- बहन! तुम्हारे पति की उम्र कितनी है? सरला ने कहा- 5 ( 5 )
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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