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________________ बड़ा है? राजहंस ने कहा कि नहीं, इससे बहुत बड़ा है । तब मेंढक ने एक और छलांग मारकर उस दो हाथ पानी की ओर संकेत करके पूछा कि क्या इतना बड़ा समुद्र है? राजहंस ने उत्तर दिया कि नहीं, इससे भी बड़ा है। तब मेंढक ने एक दो छलांग और मार कर राजहंस से पूछा कि, क्यों भाई! समुद्र इतना बड़ा है? राजहंस ने गंभीरता से कहा कि नहीं, इससे बड़ा है। अंत में मेंढक ने समस्त कुँए की परिक्रमा दकर राजहंस से फिर पूछा कि समुद्र इतना बड़ा है? राजहंस ने मुस्कुरात हुए उत्तर दिया कि नहीं, भाई! समुद्र इससे भी बहुत बड़ा है। राजहंस की बात सुनकर मेंढक ने झल्लाकर कहा कि तुम्हारा कहना सर्वथा असत्य है। इसस बड़ा जलाशय और हो ही नहीं सकता। राजहंस ने कहा कि तुम इस कुँए स बाहर निकले ही नहीं, तब तुम क्या जान सकते हो कि समुद्र कितना बड़ा है | यह कह कर वह वहाँ से उड़ गया | ___ जो मनुष्य अपन आपका सबसे बड़ा व्यक्ति समझ लेते हैं, उनकी समझ भी कुँए के मेंढक की तरह संकुचित होती है। उन्हें जब अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति मिलता है उस समय उन्हें अपनी गलत धारणा का पता चलता है। अतः इन क्षणभंगुर पर्याों तथा चंचला लक्ष्मी का अहंकार करना छोड़ दो। जिस प्रकार इस अभिमानी मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर नश्वर है, इसकी धन-सम्पत्ति / लक्ष्मी भी चंचल / चलायमान है। उसको न आत हुए देर लगती है, न जाते हुए कुछ देर लगती है | नीतिकार ने कहा है सदायति यदा लक्ष्मी नालिके र फलाम्बु वत् । विनिर्या ति यदा लक्ष्मीर्गज भुक्तक पित्थवत् ।।
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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