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________________ अर्थात् उत्तम मार्दवधर्म को स्वीकार करो । विनय से जीवन पवित्र व उन्नतिशील बनता है, जबकि अहंकार से पतन होता है । 'विनय महाधारे जो प्राणी, शिव- वनिता की सखी बखानी ।' इतिहास साक्षी है जिसने भी अहंकार किया, उसका निश्चित रूप से पतन हुआ, चाहे वह रावण हो, कौरव हो या कंस हो । मान करन ते मर गये रहा न जिनका वंश | तीनन को तुम देख लो, रावण कौरव कंस || गंगा और गंधवती नदियों के संगम पर जहर कौशिक नामक तपसी की कुटी पर वशिष्ट नामक तपस्वी पंचाग्नि तप कर रहा था । उसने गुणभद्र चारण मुनि से उपदेश सुनकर दीक्षा ले ली। इसके बाद मासोपवास सहित आतापन याग तप से उन्हें सात व्यन्तर ऋद्धि प्राप्त हो गई। राजा उग्रसेन ने आहार देने के विचार से नगर में घोषणा करवा दी कि इन मुनि को मेरे अलावा और कोई आहार न दे | पारणा के दिन मुनिराज नगर में आहार हेतु आये, मगर उस दिन नगर में अग्नि का उपद्रव हो जाने के कारण राजा पड़गाहने खड़ा नहीं हो सका । महाराज वापिस चले गये। फिर मासोपवास के बाद पारणा के दिन नगर में आये पर उस दिन हाथी का उपद्रव हो गया, जिससे राजा फिर पड़गाहने खड़ा नहीं हो पाया। महाराज पुनः बिना आहार किये वापिस चले गये। फिर से मासोपवास किया, पारणा के दिन नगर में आये । तब राजा जरासिंध के पत्र से राजा का चित्त व्यग्र था, इसलिये फिर से मुनिराज का पड़गाहन नहीं हो सका। महाराज जब लौटकर वापिस जा रहे थे तो उन्होंने लोगों को कहते सुना कि राजा स्वयं मुनिराज को आहार दे नहीं रहा और 172
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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