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________________ कल्पना है या सच्चाई, पर ऐसा देखा जाता है व्यक्ति दूसरे के नुकसान के लिये अपना नुकसान सहने को भी तैयार हो जाता है | अहंकार क कारण व्यक्ति अपने को सबकुछ समझने लगता है | वह अन्त तक भी इस अहंकार का छाड़ नहीं पाता | अहंकारी मनुष्य अपने उपकारी की भी निन्दा करने से नहीं चूकता। वह कृतघ्न बन जाता है | अहंकारी व्यक्ति अपने उपकारी का मूल्य भी नहीं आँकता | उसके ऊपर काई कितना भी बड़ा उपकार करे, वह उसके प्रति भी बहूमान का भाव नहीं रख सकता। इसीलिये कहा जाता है कि कृतघ्न की स्थिति तो उस साँप क जैसी होती है जिसे दूध पिलाने के बाद भी वह जहर ही उगलता है। एक कवि ने कृतघ्नी को कुत्ते से भी नीचा बतात हुआ लिखा है-कुत्ते को किसी ने नीच कह दिया तो कुत्ता बड़ा शोकमग्न हो गया। शोकमग्न देखकर उस कवि ने कहा कि, रे कुत्ते! तू शोकमग्न मत हो । तू ही नीच नहीं है, तुझसे भी बड़ा नीच तो वह अहंकारी कृतघ्न है। क्योंकि कुत्ता तो दो रोटी खिलानेवाले के लिये, जीवनपर्यन्त दुम हिलाता है, पर कृतघ्नी व्यक्ति तो अपने जन्म देनेवाले माता-पिता तक को भूल जाता है कृतघ्नता मनुष्य को पशुओं से भी नीचे गिरा देती है। इतिहास में ऐस उदाहरण मिलते हैं कि पशुओं ने भी मनुष्यों के उपकार का बदला चुकाया है। यूनान की एक घटना है, जब दासप्रथा प्रचलित थी। डायजनिस एक दास था। अपनी गुलामी से तंग आकर एक दिन वह भागा। पीछे-पीछे सैनिक उसका पीछा कर रहे थे। भागता-भागता वह एक जंगल में पहुँच गया। देखता है, कि एक झाड़ी के नीचे एक शर कराह रहा है | उसने शेर को देखा तो पहले तो घबराया, फिर शर (168)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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