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________________ दिन भर में जितने अवसर मिलें, दूसरों के गुणों की प्रशंसा करना शुरू कर दें | मन-ही-मन करना, उसके सामने मत करना, नहीं तो उसका गड़बड़ हो जायेगा। मन-ही-मन करें, इसमें क्या दिक्कत है? देखो, कितने बढ़िया गुण हैं। अपन मन-ही-मन विचार कर रहे हैं। दुनिया भर की और मिथ्या बातं तो मन में नहीं आयंगीं कम-से-कम | पहला उपाय है कि जहाँ-जहाँ गुण दिखाई पड़ते हैं उन सबकी अपने भीतर प्रशंसा करना शुरू कर दें। दूसरा उपाय है- भगवान के गुणगान करें। भगवान से प्रार्थना करें कि हमारे भीतर भी ऐस ही गुण आना शुरू हो जायें। विनयवान् होने के लिये अहंकार से बचने के लिये सबसे अच्छा है भगवान की प्रार्थना। तीसरा उपाय है-कृतज्ञता। दिन भर में आपके प्रति दूसरों ने जो उपकार किये हैं, दिन में एक बार उनका विचार कर लें । किस-किस न उपकार किये हैं। एसा विचार करने पर कृतज्ञता आ जायेगी, जो अपन अहंकार को हटाने में सहायक होगा। चौथा उपाय है-दूसरों की गलतियाँ न देखकर धीरे-धीरे अपनी गलतियाँ देखने का स्वभाव बनाएँ तो अहंकार कम हो जायेगा। गलती करना मानव का स्वभाव है, पर उसे स्वीकार करना दवत्व है | मनुष्य गलतियाँ करेगा, यह स्वाभाविक है; लेकिन उन गलतियों को वह स्वीकार कर ले तो वह देवता के बराबर हो जायेगा। ये चौथी बात अपने मन में, अपने ध्यान में बनी रहे | गलती हो जावे अपने से, तो विनयपूर्वक तुरन्त स्वीकार कर लें। देर नहीं करना। शाम हो गई। तो समझो देर हो गई। बस, जब ध्यान में आ जावे तुरन्त अपनी गलती को स्वीकार कर लें। हम दूसरों के दोषों को देखना (157)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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