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________________ अगर घर आते ही साथ छोटे-से बेट की तरफ ध्यान न दें तो वह चीख-चिल्लाकर सार घर को सिर उठा लेता है, क्या समझत हो मुझे! लगता है वह अपनी किसी वजह से चीख रहा है | नहीं, वह तो मानकषाय के कारण चीख रहा है, क्योंकि हम उसे इग्नोर (उपेक्षित) करते हैं। छोटे से बच्चे को उपेक्षित कर दीजिये, उसके अहं को चोट पहुँचती है। यह नहीं समझना चाहिये कि वह अभी छोटा है, समझता नहीं है। सब समझता है वह, बहुत पुराना आसामी है वह, संसार देखा है उसने, अनेक जन्मों में बहुत घूम-घाम के आ रहा है वह, दिखता छोटा-सा है। यह मानकषाय छोटों से लेकर बूढ़ों तक सभी में पायी जाती है। हम इस संसार में कैस जीत हैं, इसका एक छोटा-सा उदाहरण है। एक साधु जी को राजा ने अपने यहाँ बुलाया। साधु को राजा बुलायगा तो उसका कोई-न-कोई इन्टेशन (प्रयोजन) तो होगा ही। राजा चाहता था कि वे साधु जी बिल्कुल फक्कड़ हैं, उनके पास कुछ भी नहीं है, इसलिये जरा एक आध बार मेर महल में तो आकर देखें कि मैं कैसे जीता हूँ| उन्होनें तो कभी ऐसा देखा तक न होगा। आता है कई बार अपने भी मन में ऐसा भाव | अपने घर में दूसरों को बुलाने के पीछे कौन-सा भाव रहता है? कभी-कभी, हमेशा नहीं । अपनी बहुत सारी चीजें जब हम दूसरों को दिखाते हैं तब ऐसा नहीं लगता कि दूसरों को ये चीजें दिखाकर मैं प्रशंसा हासिल करूँ? तो उन साधु जी को राजा ने बुलाया। उनका उद्देश्य भी यही था कि उन्हें दिखाऊँगा कि मेरा महल कितना बड़ा है | मैंने मनोरंजन के कितन साधन अपना रखे हैं। बाबाजी आप कितने दुःख में रहते होंगे । आपके पास कुछ नहीं है | और राजा जी उन साधु जी को अपने महल में ले गये | उनके महल के पास ही समुद्र था। राजा (155)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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