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________________ गई कि मेरा अपमान किया जा रहा है। पर्यायबुद्धि ही मान को पैदा करनवाली है। पर्यायबुद्धि के कारण उनके मन में आ गया कि मेरे ऊपर पत्थर फेके जा रहे हैं, मुझे गाली दी जा रही है। उपयोग आत्मचिंतन से हटकर बाहर पर्याय में लग गया और उन्हें क्रोध आ गया, जिसके परिणामस्वरूप द्वारिका नगरी भस्म हुई और अन्त में स्वयं भी समाप्त हो गये | यह पर्यायबुद्धि ही संसार का कारण है। हम अपने स्वरूप को भूलकर इन परपदार्थों में अंहकार/ ममकार करते हैं। हम लोग कहते जरूर हैं कि शरीर जड़ है और आत्मा चेतन । परन्तु सच कहो तो अपना बड़प्पन शरीर से मानते हो, जड से मानते हो या उस चैतन्य प्रभु आत्मा से? अपने मन से पूछो तो आपका मन जवाब दे गा कि अगर हमार पास पर्याप्त धन है, शरीर स्वस्थ है, समाज में हमारी प्रतिष्ठा है, हमारा सम्मान है ता हम समझते हैं कि हम भी कुछ हैं। और अगर यह सब नहीं हैं तो हम समझते हैं कि हम हैं ही क्या? कुछ भी नहीं । पर ध्यान रखना, यह सारी-की-सारी वस्तुएँ जड़ हैं, इनसे आत्मा का कोई नाता नहीं है | आत्मा तो तब महान बनता है, जब उसमं उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव आदि गुण हों। आचार्यों न मान को मीठा जहर कहा है। जहर दो प्रकार का होता है-एक मीठा और एक कड़वा। कड़वे जहर से तो सभी बच जाते हैं, परन्तु मीठे जहर से बचना विद्वानों के लिये भी दुःसाध्य है | क्रोध को ता हम बुरा मानते हैं, परन्तु मान को हम सभी अच्छा मानते हैं। जगह-जगह हमारी प्रशंसा हो, हमें मानपत्र दिये जायें, तो हम बड़े प्रसन्न होत हैं और अपने आप को महान मानत हैं। मानपत्र सभी चाहते हैं। कभी किसी ने यह नहीं कहा कि हमें क्राधपत्र दे दो, लोभपत्र दे दो, हम सबसे बड़े लोभी हैं। क्रोधपत्र लेकर के क्या (135)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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