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________________ मैं भी हाथी-जैसा दिखू, मेरा भी हाथी-जैसा विशाल शरीर हो और हाथी जैसी मदमस्त चाल चलूँ | बस, फिर क्या था । वह मेंढक साइकिल की दुकान पर पहुँच, बोला-भैया! मेरे शरीर में इतनी हवा भरो कि मैं हाथी जितना बड़ा हो जाऊँ। दुकानदार ने मेंढक को बहुत समझाया-तू अपने हाने में ही खुश रह, हाथी-जैसा बनने का ख्याल छोड़ दे | मगर मंढक की समझ में कुछ नहीं आया। दुकानदार ने मजबूरन पम्प उठाया और मेंढक के शरीर में हवा भरना शुरू किया। मेंढक ने कहा-और भरो। उसने एक दो पम्प और मारे | मेंढक बोला-और भरो | दुकानदार न एक दो पम्प और मारे | मेंढक बोला-और भरो, बस भरते जाओ, रुको मत | जब तक मैं फूलकर हाथी-जैसा बड़ा न हो जाऊँ, भरत जाओ | उसन एक दा पम्प और मारे कि मेंढक का पट फट गया और उसके प्राणपखेरू उड़ गये | वह मेढ़क कोई और नहीं, हम लोग ही हैं। हम लोग भी झूठे रौब और प्रदर्शन में मर जा रहे हैं, अहंकार की झूठी हवा में फूले जा रहे हैं। पर ध्यान रखना, दुनिया में आज तक किसी भी अहंकारी व्यक्ति का कल्याण न हुआ है, और न होगा। अहंकारी व्यक्ति नियम से दुर्गति में ही जाता है। यह पक्की गारन्टी है। अहंकार पापों को बढ़ाने वाला है | जब तक वह समाप्त नहीं होगा, तब तक परमात्मा से दूरी बनी रहेगी। द्रोपदी का अहंकार जब तक चूर नहीं हुआ, तब तक नारायण उसकी रक्षा के लिये नहीं आये | द्रोपदी को बड़ा घमण्ड था अपने गांडिवधारी पति अर्जुन पर, कि वह दुर्योधन को परास्त कर देगा; परन्तु चीरहरण के वक्त अर्जुन तो क्या धर्मराज युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव सहित महारथी भीष्मपिता, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य (119)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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