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________________ वैरंग चिट्टी को लेने में इतने उत्सुक क्यों होत हो? इसे लेने से इंकार कर दा, बस झगड़ा खत्म | एक व्यक्ति ने अपने किसी परिचित को पत्र लिखा | वह पत्र बड़े गुस्से में लिखा था। पत्र में पचासों गालियाँ और कठोर भाषा थी। संयोग से महाराज वहाँ पहुँच गये | उन्होंने वह पत्र पढ़ा और उससे कहा-अगर तुम मेरा कहना मानो ता मैं एक बात कहूँ? वह बाला-आपकी सब बात मानूंगा, लेकिन इस पत्र में कुछ भी परिवर्तन नहीं करूँगा। यह पत्र उसे जरूर दूंगा। महाराज ने कहा-ठीक है | आप पत्र जरूर भेजें और जो पत्र लिखा है, आपकी इच्छा है तो यही पास्ट करें मगर इस पोस्ट आज नहीं कल करना और कल पोस्ट करने से पहले इसे दुबारा पढ़कर पोस्ट करना । वह बोला-ठीक है | वैस तो मैं अभी और इसी वक्त इसे पोस्ट करनेवाला था, मगर अब इसे कल डालूँगा | दूसरे दिन शाम को वह महाराज के दर्शन करने आया। उन्होंने उससे पूछा-पत्र डाल दिया? उसन शर्मिन्दगी से कहा-डाल दिया। उन्होंने पूछा-कहाँ? वह बोला-कचरे के डिब्बे में | महाराज ने कहा-लकिन आपने लिखा तो उसे लेटर बाक्स में डालने को था, फिर आपने उसे डस्टबिन में क्यां डाल दिया? वह बोला-क्षमा करना । दूसरे दिन सुबह जब मैंने वह पत्र पढ़ा तो शर्म से मेरा सिर झुक गया। मुझ अपने लिखे पर विश्वास नहीं हा पा रहा था। पता नहीं मुझमें कौन-सा भूत सवार था जो मैंने इतनी कड़वी और ओछी भाषा का प्रयोग कर डाला। आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैं आपका किन शब्दों में आभार प्रकट करूँ? मैं बड़े अनर्थ से बच गया । महाराज बाले-जब तुम पत्र लिख रहे थे, तब तुम पर क्राध का भूत सवार था और तुम्हें यह पता नहीं था कि तुम क्या लिख रहे हो और इसका परिणाम क्या होगा? शराबी पर शराब का नशा और क्रोधी पर (107)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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