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________________ नकारात्मक सोच बंद करूँगा और सकारात्मक सोच शुरू करूँगा, ताकि मेरे भीतर क्षमा धारण करने की सामर्थ्य उत्पन्न हो । सामर्थ्यवान ही क्षमा धारण कर सकता है, यदि क्षमा धारण हो जाये तो सामर्थ्य और बढ़ जाती है। क्रोध को कम करने का तीसरा उपाय है-वातावरण को हल्का बनाना। हमेशा इस बात का ध्यान रखना कि जब भी क्रोध आयेगा तब मैं उसमें ईधन नहीं डालूँगा, और यदि दूसरा कोई ईंधन डालेगा तो मैं वहाँ से हट जाऊँगा। क्रोध एक तरह की अग्नि है, ऊर्जा है, वह दूसरे के द्वारा भी एक्सटेंड हो सकती है और मेरे द्वारा भी एक्सटेंड हो सकती है, ऐसी स्थिति में वातावरण को हल्का बनाने का प्रयास करें। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर एक साहित्यकार थे। उनके पिता जी एक दिन घर दर से लौटे | उनकी जीवन साथी भखी बैठी उनका इन्तजार कर रही थीं। तब ये रिवाज था कि जब तक परिवार के सभी लाग खाना न खा लें तब तक माँ खाना नहीं खाती थीं। माँ का स्वभाव ही ऐसा होता है, वह सबको खिलाकर फिर खाती है | घर में शेष सबने खाना खा लिया पर अभी जीवनसाथी नहीं आये, बैठी हैं वे, दो बज रहे हैं। इतने में आये जनाब जल्दी-जल्दी हाथ-पाँव धोकर जैसे ही बैठ कि भोजन करने से पहले ही, जो भी मन में था वह सब इनने सुनाना शुरू कर दिया। अब चले आ रहे हैं, सुबह के गये, किसी का ध्यान नहीं है। हमने कहाँ स ये गृहस्थी कर ली। हमार पिताजी को भी क्या सूझी। लेकिन ऐसी स्थिति में करें क्या? इसका साल्यूशन क्या है-अपन को तो ये सोचना है। सामने वाला बिल्कुल चुप है, सकत में है, समझ तो आ गया कि 95)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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