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________________ जाता है, तो मुड़कर देखते हैं । यदि धक्का लगानेवाला अपने से कमजोर है तो वहाँ अपनी ताकत दिखाते हैं-क्यों रे, देखकर नहीं चलता ? यदि वह ज्यादा ही कमजोर है तो शरीर की ताकत भी दिखा देते हैं। लेकिन अपन बहुत होशियार हैं। अगर वह पहलवान है तो अपन क्षमाभाव धारण कर लेते हैं, कहते हैं- कोई बात नहीं, भाई साहब! होता है ऐसा । वहाँ एकदम क्षमा धारण कर लेते हैं । यह मजबूरी में की गई क्षमा है । यह कोई क्षमा नहीं है । दुकान पर ग्राहक आये हैं । वे कहते हैं- ये चीज दिखाओ । हाँ। देखो, साहब | ― • ये नहीं वह चीज दिखाओ । हाँ, देखो, साहब | ये नहीं, वह। ऐसे पचास चीजें देख लीं, बाद में उठते हुये धीरे से कहा - फिर कभी आऊँगा, अभी तो पसंद नहीं आया । तब भी आप उस पर क्रोध नहीं करेंगे। जिस दुकानदार को क्रोध आयेगा, उसकी दुकानदारी मिट जायेगी। कोई दुकानदार क्रोध नहीं करेगा । ऐसे स्वार्थवश भी हम क्षमाभाव धारण करते हैं, अपनी मजबूरी से । किसी सांसारिक आकांक्षा को लेकर भी हम क्षमाभाव धारण करते हैं । अपने मान-सम्मान के लिये भी हम चार लोगों के बीच क्षमाभाव धारण कर लेते हैं। पर यह सब सच्ची क्षमा नहीं है । — क्रोध करने से सदा अहित ही होता है । हमें क्रोध नहीं करना चाहिये - यह कहना तो बहुत आसान है, लेकिन अगर क्रोध आ जाता है तो हमें क्या करना चाहिये? इसका साल्यूशन (समाधान) क्या है ? क्रोध से बचने के लिये अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग उपाय बताये हैं | श्री क्षमासागर जी महाराज ने लिखा है 93 -
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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