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________________ देखते हैं, इसे आने दो । क्रोधाविष्ट राजा दूर डाल पर बैठ तोते को देख रहा था और ताता भी राजा को निहार रहा था, मानों वह मूक प्राणी कुछ कहना चाह रहा हो । राजा ने फिर दोना को उठाया, पानी इकट्ठा किया और जैसे ही पीने को हुआ कि तोता फिर आ रहा था। अबकी बार राजा एकदम चौकन्ना / सावधान था। एक हाथ में उसने दोना ले रखा था और दूसरे हाथ में चाबुक ले लिया था। राजा ने सोच लिया था कि अबकी बार भी यदि तोता पानी गिराता है तो मैं तोते का काम तमाम कर दूंगा। तोता दोना गिराने के लिये आगे बढ़ा कि उस क्रुद्ध सम्राट ने अपने हाथ का चाबुक बड़ी निर्दयता से तोते को दे मारा | छोटा-सा ता पंछी था, मुट्ठी भर उसकी जान थी, तड़फड़ाया और जमीन पर ढेर हो गया, उसके प्राण पखरू उड़ गय | राहत की सांस लेते हुय राजा ने सोचा कि काफी देर हो गई है, दोना-दाना करके कितनी देर में पानी पी पाऊँगा। क्यों न जहाँ पानी का स्रोत है, जहाँ से धार बहकर आ रही है, वहीं पेड़ पर पहुँचकर पानी पी लिया जाये तो ठीक रहेगा। दाना फेककर राजा शीघ्रता से पेड़ पर चढ़ा, पर वहाँ जाकर राजा ने जो देखा तो राजा फटी-फटी आँखों स देखता ही रह गया। भय से उसका शरीर काँप गया | किंकर्तव्यविमूढ़ राजा एकदम पश्चात्ताप में डूब गया, मैंने यह क्या कर दिया? राजा का सारी-की-सारी बात चलचित्र की तरह दिखने लगी | राजा कुछ सोच ही नहीं पा रहा था कि मैंने यह क्या अनर्थ कर दिया। क्योंकि जिस वह पानी की धार समझ पीने को आतुर था, वह पानी की धार नहीं बल्कि अजगर सर्प के मुख से निकलनेवाला जहर था, जो अजगर के सोते समय उसके मुख से बह रहा था। राजा पश्चात्ताप में डूब गया । मुझे प्रजापाल समझ इस तोते ने तो मरे प्राणों की रक्षा की और मैं प्रजापाल, रक्षक होकर भी तोते (86)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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