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________________ संगीत व वास्तु पुस्तक (PDF) मुफ्त डाउनलोड करें (2) देखें www.dwarkadheeshvatu.com जिस भवन/कमरे में माता-पिता निवास करते हैं, उसका वास्तु जैसा भी होगा वह उनकी संतानों पर लागू रहेगा, चाहें वह संतान कहीं भी रहे । माता या पिता में से किसी एक के भी जीवित रहने पर वास्तु लागू रहेगा। माता/पिता दोनो की मृत्यु के पश्चात यदि एक ही भवन में जितने भाई-बहन निवास करते हैं, वह अलग-अलग परिवारों के रूप में माने जाएंगे। जो परिवार भवन के जिस भाग में रहेगा, उसके दोष उस पर लागू हो जाएंगे। माता/पिता दोनो की मृत्यु के पश्चात पति , पत्नी और बच्चे जिस भवन/कमरे में रहेंगे उसका वास्तु लागू होगा। यदि इनमें से कोई भी (पति/पत्नी/बच्चे) बाहर जाता या रहता है तो भी उस पर यही वास्तु लागू होगा। जिस भवन आप रहते हैं उसमें कोई भी रिश्तेदार जैसे चाचा, मामा, भांजा, साला, जीजा, फूफा, गुरू, सेवक, बुआ, मामी, चाची, नानी, नौकरानी इत्यादि निवास करते हैं तो भवन के जिस भाग में यह रहेंगे उस भाग का वास्तु और इनके अपने भवन/कमरे का वास्तु भी इन पर लागू रहेगा। भवन के किसी स्थान में दोष होने पर उससे सम्बन्धित संतान का विवाह भी उसी संतान से होगा जिसके भवन में उससे सम्बन्धित स्थान में दोष होगा। जिस संतान का अपने भवन में स्वयं से सम्बन्धित स्थान ठीक होगा उसका विवाह भी उसी संतान से होगा जिसका उसके भवन में उससे सम्बन्धित स्थान ठीक होगा। अन्यथा विवाह संभव नहीं है। विवाह के बाद यदि किसी एक संतान का उससे सम्बन्धित स्थान ठीक हो जाता है तो दूसरे का स्थान भी डेढ़ बर्ष के अदंर स्वयं ही ठीक हो जाएगा, यह प्राकृतिक विधान है। आपके भवन/कमरे से सटते हुए उत्तर, पूर्व, नार्थ-ईस्ट, नार्थ-वेस्ट व साउथ-ईस्ट में अन्य भवन/कमरा होने पर (चाहें उसमें पशु रहें या मनुष्य) आपके ऊपर वास्तु दोषों का प्रभाव आंशिक रहेगा। यदि इन दिशाओं में आपके भवन/कमरे से सटकर अन्य भवन/कमरे हैं किन्तु उसमें कोई निवास नहीं करता है तो आपके ऊपर वास्तु दोषों का प्रभाव कम नहीं होगा। गर्भपात या किसी संतान की मृत्यु होने पर उसे भी गिनती में उसी नम्बर पर माना जाएगा। पहली, पाँचवीं व नौवीं संतान यदि पुरूष है तो लगभग पूरी तरह से पिता पर जाएगी, यदि महिला है तो आंशिक रूप से माता पर भी जाएगी। दूसरी, तीसरी, चौथी, छठी, सातवीं व आठवीं संतान माता और पिता दोनों पर लगभग समान रूप से जाएगी। यदि यह संतान महिला हैं तो माता और यदि पुरूष हैं तो पिता पर आंशिक प्रधानता रहेगी। घर का कर्ता-धर्ता सदैव, पश्चिम / दक्षिण / साउथ-वेस्ट / साउथ-ईस्ट / नार्थ-वेस्ट भाग में और अन्य सदस्य व बच्चे सदैव पूर्व / उत्तर / नार्थ-ईस्ट भाग में ही रहते हैं। विशेष परिस्थितियों में जो सदस्य पूरे परिवार का पालन-पोषण करेगा (जैसे बेटा बड़ा होकर परिवार की सेवा करने लगता है) तो कुछ समय के पश्चात (लगभग 12 बर्ष) उसे घर का पश्चिम / दक्षिण / साउथ-वेस्ट / साउथ-ईस्ट / नार्थ-वेस्ट का स्थान ही मिलेगा। वह पिता के स्थान पर आ जाता है और माता-पिता को अन्र सदस्यों या बच्चों का स्थान मिल जाता है। परिवार में जमीन-जायदाद का बँटवारा होने पर अधिकतर घर की बड़ी संतान को सदैव साउथ-वेस्ट , दूसरी संतान को साउथ-ईस्ट व तीसरी संतान को नार्थ-वेस्ट और चौथी संतान को नार्थ-ईस्ट का भाग ही मिलता है। प्राचीन मान्यताएँ :-हमारे ऋषि-मुनियों ने वास्तु में जो ज्ञान दिया है वह पूर्णता से मान्य है। उस समय ज्यादातर भवन एक मंजिल तक बनाकर रहने का प्रचलन था। छत पर कोई निर्माण नहीं होता था। आजकल भवन बहुमंजिला बनते हैं और पूरी छत पर या कुछ भाग में भी निर्माण होता है। उनके द्वारा बताए गए वास्तु नियम हर मंजिल और छत पर समान रूप से लागू करने से उनकी कही हुई बात सत्य साबित होती है। अक्सर लगने वाली गलतियाँ :- हम लोग मुख्य द्वार उच्च (शुभ) स्थान में बनाते हैं किन्तु सीढ़ी और मुमटी भी इसी स्थान पर बना देते हैं। इससे मुख्य द्वार के अच्छे प्रभाव नहीं प्राप्त होते हैं बल्कि सीढ़ी और मुमटी के अशुभ प्रभाव होते हैं। ऊपरी मंजिलों पर रसोई / टॉयलेट/बॉथरूम के निर्माण में संक/गढ्ढ़ा बनाया जाता है, जिसमें से गन्दे पानी के पाईप फर्श में से ले जाते हैं। इससे भवन का वह भाग मोटा और वजनी हो जाता है। जिस दिशा में इस तरह से निर्माण होता
SR No.009394
Book TitleVaastu Principles Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnkit Mishra
PublisherAnkit Mishra
Publication Year2016
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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