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________________ कण्डुन्घ्न, शमयेत, पीतं सम्यक् दोषोदरे हितम्।" (चरक सु. अ 1 श्लोक 100) सुश्रुत संहिता में निम्न रूप से फिर वर्णन है कि तीक्ष्णान्युष्णानि, कटुनी, तिक्तानी, लवणानुरसानी, लघुनि, शोधनानि, कफवातघ्न, कृमि, मेदो, विष, गुल्मार्श, उदर, कुष्ठं, शोफारोचक, पाण्डुरोग, हृद्यांनी दिपनानिच सामान्यः। (सूत्रा अ. 45 श्लोक 217) - सुश्रुत सू. अ. 45 श्लोक 217 का पुन: इसी आर्ष ग्रंथ में वर्णन है। गौमूत्रं कटु तीक्ष्णोष्णं सक्षारस्नान वातलम् लघ्वाग्नि, दिपनं, मध्यं, पित्तल, कफवात, शुलं, गुल्मोदरानाहविरे कास्थापनादिषु, मूत्र प्रयोग साध्येषु गव्यं, मूत्र प्रयोजयेत सु.अ. 220-221 गौमूत्र कड़वा, चरका, कषैला, तीक्ष्ण, उष्ण, शीघ्र पाँचक, मस्तिष्क के लिए शक्तिवर्धक, कफ वात हरने वाला, शूल (Colic) गुल्म, उदर, आनाह, कुण्डु (Itching Pain) खुजली, मुखरोग नाशक है। यह किलास (Lucodermo) कुष्ठ, आम, बस्तिरोग नाशक है। नेत्र रोग नाशक है। इससे अतिसार (Amebiasis) वायु के सब विकार, कास, शोथ, उदररोग, कृमि, पाण्डु, तिल्ली, कर्णरोग, श्वास, मलावरोध, कामला, बिल्कुल ठीक होते हैं। चिकित्सा में गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी मूत्रों में गौमूत्र में गुण अधिक है। अत: गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। आयुर्वेद के अति प्रचलित ग्रंथ भाव प्रकाश संग्रह में भाव मिश्र ने निम्नलिखित गुण लिखे हैं। गौमूत्रं, कटु, तीक्षोष्ण, क्षार तिक्त कषायकम्। लघ्वाग्नि दीपनं, पित्त कृत्कफ वात नुत।।। शुल, गुल्म, उदर, आनाह, कण्डु अक्षि मुखरोगजित्। किलासगद्वातम् वस्ति कुष्ठ नाशकम्।। कास, स्वासापहम् शोथ, कामला पाण्डु रोगहरत्। कण्डु विलास गद्, शूलं, मुख अक्षिरोगान्।।। ' गुल्म, अतिसार, मरुदामय, मुखरोधान्। कास, सकुष्ठ जठर, कृमि, पाण्डुरोगान।। अध्याय 19 श्लोक 1 से 6 भावप्रकाश पूर्वखंड नि.ध. अर्थ: गौमूत्र चरका, तेज, गरम, क्षार, कड़वा, कषैला, लवण अनुरस, लघु अग्नि दीपक, मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओं को बढ़ाने वाला, वात कफ नाशक पित्त करने वाला है। पेट में दर्द, वायुगोला, पेट के अन्य रोग, खुजली, नेत्र रोग मुख के सभी रोगों को नष्ट करता है। श्वित्र (सफेद दाग) (लिकोडरमा), रक्त विकार, सभी कुष्ठ ठीक हो जाते हैं। कास, श्वास, शोथ, पीलिया (कामला), रक्त की कमी, दस्त लगना (अतिसार), वायु के सभी रोग, सभी कीटाणु नष्ट करता है। गौमूत्र एक (अकेला) ही पीने से विकार नष्ट कर देता है। सभी प्रकार के मूत्रों से गोमूत्र में गुण अधिक है। लीवर, तिल्ली, उदर रोग, सूजन, दस्त साफ न आना, बवासीर, कर्ण में डालने से कान के रोग नष्ट होते हैं। 'आम वृद्धि, मूत्र रोग, स्नायु विकार, अस्सी प्रकार के वात रोग नष्ट होते हैं। सारांश है कि सम्पूर्ण रोगों पर एक अकेला गौमूत्र ही पूर्ण सक्षम है। फारसी ग्रन्थ, 'अजायबुल्मखलुकात' में अनेक असाध्य रोगों की गौमूत्र से चिकित्सा का वर्णन है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
SR No.009393
Book TitleGaumata Panchgavya Chikitsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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