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________________ भामाशाह दूत-(भामाशाह की ओर पत्र बढ़ाते हुए ) मेरे आगमन का प्रयोजन श्रीमान् के कर-कमलों में यह पत्र पहुंचाना है । भामाशाह-( पत्र लेकर स्वयं पढ़ते हुए ) आप अतिथि-गृह में निवास कर मार्ग का श्रम दूर करें, संध्या से पूर्व पत्रोत्तर प्राप्त हो जायेगा। ( दूत का गमन ) भामाशाह --( महाराणा की ओर पत्र बढ़ाते हुए ) यह यवनभक्त मानसिंह का पत्र है। - प्रतापसिंह-(घृणापूर्वक ) मैं इसे लेकर क्या करूंगा ? अग्नि की ज्वाला को अर्पित कर दीजिये। ___ भामाशाह -( शान्त स्वर से ) पठन के पूर्व नष्ट करना समुचित नहीं, अतः केवल पढ़ लेने की मेरी प्रार्थना है। __ प्रतापसिंह-आपकी सम्मति का मैं विरोध नहीं करता, पर दुरभिमानी मानका पत्र पढ़ना मेरे स्वाभिमान के विरुद्ध है। अतः आपही पढ़िये । भामाशाह-(स्मितिपूर्वक ) यह विषपान मैं ही स्वीकार करूं? अस्तु, स्वामी की आज्ञा निर्विरोध पालना सेवक का धर्म है । (पत्रपठन ) महाराणा ! ___ शोलापुर में प्राप्त विजयका सम्वाद आफ्को हर्षप्रद होगा। देहली पहुंचने के पूर्व मैं आपसे मिलने का इच्छुक हूं। आशा है आप मुझे अपना अतिथि बना सकेंगे। -मानसिंह
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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