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________________ भामाशाह नहीं की जा सकती । अतः मैं शीघ्र ही सपरिवार रणथम्भौर पहुंचने का प्रयत्न करूंगा । दूत - साधुवाद ! इस स्वीकृति से मेरे आने का प्रयोजन सफल हो गया, अब मैं चलता हूं। वहां आपके निवास आदि की सभी व्यवस्था कर रखूंगा । भारमल - आप मेरी ओर से निश्चिन्त हो कर जाइये। आज से ठीक एक पक्ष उपरान्त आप मुझे रणथम्भौर में ही पायेंगे । पटाक्षेप स्थान अङ्क २ दृश्य १ - अलवर में भोमा नाहटा की गृह वाटिका ----- समय - -सन्ध्या । ( एक ओर से पूर्वीय वेष भूषा से अलंकृत, वीणा-धारिणी अलका सुन्दरी का आगमन और अशोक वृक्ष के नीचे बैठ वीणा के तार झंकृत करते हुए स्वरआलापन ) गीत मधु-ऋतु का सुख मधुर मिलन में । पिकी आम्र कोरक से लिपटी, गुँजा रही यह गान गगन में । मधु-ऋतु का सुख मधुर मिलन में ॥ १८
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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