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________________ भामाशाह किये हैं; उनके बंशजों को धन धान्य ग्राम आदि से पुरस्कृत करने की भी घोषणा करता हूं । ( भामाशाह से ) अमात्यवर ! मेरे प्रिय अश्व चेतक केशव गिरने के स्थान पर भी एक सुन्दर समाधि शीघ्र ही बनवा दें और प्रति वर्ष उसके सम्मानार्थ मेला भरवाने की भी व्यवस्था करें । भामाशाह – अत्यन्त शीघ्र ही आपके आदेशानुसार समाधि का निर्माण कार्य आरम्भ हो जायेगा । प्रताप सिंह — अब मैं भगवान एकलिंग की जय बोल कर यह वक्तव्य समाप्त करता हूं । ( महाराणा का आसन ग्रहण, 'भगवान एकलिंग की जय' 'महाराणा की जय' 'स्वतन्त्रता देवी की जय' आदि जय - ध्वनियां ) भामाशाह - (शान्ति होने पर आसन से उठकर) वीरावतार महाराणा ! और वीरता -प्रिय सामन्तों ! हमारे गुण ग्राहक महाराणा ने अभी जो उद्गार प्रकट किये हैं, ये निस्वार्थ और उदार हृदय के प्रतीक हैं । वस्तुतः मैंने कर्त्तव्य पालन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं किया ! मेवाड़ - उद्धारका श्रय तो उन्हें है, जो विजय - प्रासाद के निर्माण में नींव के पत्थर बन सदा के लिये सो गये । फिर भी अपने लघु अर्थार्पण के लिये महाराणा प्रदत्त यह महत् मान मैं सेवक भाव से स्वीकार करता हूं। और देश सेवा में ही शेष जीवन व्यतीत करने का संकल्प करता हूं । महाराणा की साधना, त्याग और तपस्या से प्राप्त यह स्वतन्त्रता अक्षुण्ण रहे। यह मंगल कामना करते हुये मैं अपना आसन ग्रहण करता हूं | ( भामाशाह के आसन ग्रहण करने पर 'महाराणा की जय' 'मेवाड़ के उद्धारकर्त्ता की जय' और 'जननी जन्म भूमि की जय' आदि ध्वनियों पूर्वक सभा की समाप्ति ) पटाक्षेप १४३
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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