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________________ भामाशाह पातक नहीं कर सकता। आप अपने स्वामि से कह दें कि वे अपने मनकी अभिलाषा मनमें ही रखें। भामाशाह से इसकी आशा न करें। मिर्जा खाँ-मित्रवर ! इस महान् प्रश्न के निर्णय में इतनी शीव्रता न करें, यदि आप महाराणा को अकबर की सेवा में उपस्थित कर देंगे तो आप कई पीढ़ियों तक राजसी जीवन बिता सकेंगे और यह आपके लिये कोई दुष्कर कार्य नहीं। भामाशाह-दुष्कर ही नहीं, असम्भव है। यदि आपने मित्रता का व्यवहार भुझ से न किया होता तो यहीं युद्ध का दृश्य उपस्थित हो जाता। ___ मिर्जा खाँ-इतना उत्तेजित होने की आवश्यकता नहीं। यदि आप शीघ्रता में यथोचित निर्णय न कर पा रहे हों तो सोच विचार कर पुनः अपनी स्वीकृति दे दीजियेगा। भामाशोह-इस विषय में मुझे कुछ भी सोचने विचारने की आवश्यकता नहीं। मैंने जो उत्तर आपको दिया है वही मेरा अन्तिम निर्णय है। मिर्जा खाँ-इतना समझाने पर भी आप नहीं समझे ? जिस सम्राट की कृपा पाने के लिये अनेक नरेश लालायित रहते हैं, आज वही आपसे कृपा की भिक्षा मांग रहा है। पर आप इस प्रकार कृपणता प्रकट करते हैं, यह मूर्खता की चरम सीमा है। भामाशाह-खानखाना ! आपके इस वाक-भूचाल से मेरे सिद्धांतों का सौध कम्पित नहीं हो सकता। त्रिलोक की सम्पत्ति का लोभ भी भामाशाह को विचलित करने में असमर्थ होगा। १२२
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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