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________________ भामाशाह दृश्य ६ स्थान-मालवा का सीमा प्रान्त समय-सन्ध्या ( भामाशाह और ताराचन्द्र ) भामाशाह-ताराचन्द्र ! तुम्हारी युक्ति सफल हुई, मुझे आशा न थी कि मालव-नरेश इतनी सरलता से भेंट दे देंगे। ताराचन्द्र-वस्तुतः मालव-नरेश से धनराशि प्राप्त करना असंभवसा था । पर उनके मंत्री की प्रेरणा के फलस्वरूप ही हमें यह राशि प्राप्त हुई है। भामाशाह-यद्यपि यह राशि यवन-सम्राट के आक्रमण निष्फल करने के लिये पर्याप्त नहीं, पर जो मिला है उसी पर सन्तोष करना ही बुद्धिमत्ता है। ताराचन्द्र-संतोष के सिवा अन्य उपाय ही क्या है ? पर यदि इसी प्रकार किसी अन्य नरेश से भी अर्थ-प्राप्ति हो जाती तो हम महाराणा के मनोरथ को मूर्तिमान करने में सफल हो जाते । भामाशाह-तुम्हारा कथन ठीक है पर मेरी दृष्टि में अब ऐसा कोई नरेश नहीं। ताराचन्द्र-अस्तु ! हमें अपना प्रिय मेवाड़ त्यागे अधिक दिन हो गये हैं। अतः अब मातृ-भूमि के दर्शन करने की उत्कण्ठा बलवती हो रही है। ___ भामाशाह-महाराणा भी जाने किस दशा में दिन व्यतीत कर रहे होंगे ? उनके समाचार जाने बिना मुझे चैन नहीं पड़ता।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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