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________________ भामाशाह श्रेष्ठ है । देखिये, नीतिवान् व्याध शक्तिशाली सिंह का भी वध कर देता है। ___ मालवेंद्र-आपके इस कथन का विरोध मैं नहीं करता, पर स्वराष्ट्र के कण्टक को दण्डित करना भी नीति-शास्त्र की आज्ञा ही है । ___ मन्त्री-अवश्य, सिद्धि के लिये नीति-शास्त्र में साम, दाम, भेद और दण्ड ये चार उपाय वर्णित हैं। पर प्रारम्भिक त्र यी विफल होने पर ही अन्तिम-दण्ड-उपायके प्रयोग की सम्मति दी गयी है । कारण दण्ड के प्रयोग से सेना की हानि होती है, भेद के प्रयोग से कपटी होने का अपयश मिलता है। अतएव दाम का प्रयोग ही शासन के लिये हितकर है। मालवेन्द्र --आपकी यह सम्मति शत्र की इच्छा का ही समर्थन करती है। मेरे विचार से उद्दण्ड शत्रु के साथ दाम का प्रयोग उतनी ही मूर्खता है, जितनी वज्र से तोड़ने योग्य पर्वत पर पुष्प वृष्टि । अतः दण्ड प्रयोग ही मुझे नीतिसंगत प्रतीत होता है । मन्त्री-प्रजाप्रिय ! आवेग में दण्ड प्रयोग कर अपनी लोक-प्रियता न खोयें । मेघराज मधुर जल गिरा कर ही लोकप्रिय बनता है, वज्र गिरा कर नहीं। अतः भामाशाह को क्षमा कर दाम का प्रयोग ही हमारे लिये सुगम उपाय है। ___ मालवेन्द्र-मंत्री ! मैं आपकी सम्मति से सहमत नहीं । क्षमा व्रतधारियों का गुण है, तेजस्वी राजाओं का नहीं। हम तेजवान् दहकते अंगार हैं, सर्व साधारण के चरणों से कुचले जाने योग्य राख के ढेर नहीं । अतः अकारण हमारा अपमान करने को उद्यत भाम शाह के साथ दण्ड-नीतिका प्रयोग ही मेरी दृष्टि में उपयुक्त है। १०८
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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