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________________ भामाशाह रामा सहाणी-यदि आपकी ऐसी ही आज्ञा हो तो उसे टालने का साहस कौन कर सकता है ? मैं आपका आदेश शिरोधार्य करता हूं। प्रतापसिंह-आपकी इस स्वीकृतिसे मुझे प्रसन्नता है । लीजिये यह राजमुद्रा स्वीकार कीजिये। आज से आप मेरे सहायक मंत्री हुए, मेवाड़-सेवा के प्रति सदैव जागरूक रहना आपका कर्तव्य है । रामा सहाणी-मैं यथासम्भव मेवाड़-रक्षा का प्रयत्न करूंगा । प्रताप सिंह-साधुवाद ! अब आज की विचार-परिषद् समाप्त की जाती है। ( सबका गमन) पटाक्षेप दृश्य ४ स्थान-मालवा का सीमा प्रान्त । समय-प्रभात। [ समतल भूमि पर अनेक शिविर, स्वकीय दैनिक कार्यों में व्यस्त मेवाड़ी जन, एक शिविर के बहिभार्ग में भामाशाह और ताराचन्द्र ] भामाशाह-ताराचन्द्र ! मेवाड़- उद्धार की भावना हमें जन्मभूमि से इतनी दूर मालवा प्रांत की सीमा पर ले आयी है, अब यह अवसर भाग्य की परीक्षा का है । ताराचन्द्र-पूज्य ! भाग्य की परीक्षा का नहीं, हमारे पौरुष की परीक्षा का अवसर है। हमें भाग्य का अवलम्बन त्याग पौरुष का १०२
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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