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________________ भामाशाह नहीं कर सकता । चाहे मार्तण्ड पश्चिम से उदित होने लगे, सागर अपनी मर्यादा त्याग दें और हिमालय भी थर थर कांपने लगे, पर भील जाति कभी स्वामिद्रोह नहीं कर सकती। प्रतापसिंह-धन्य हैं आपके सद्विचार ! (भामाशाह से ) आप कल से ही मेवाड़ी सेना में सम्मिलित होने के लिये राजघोषणा करवायें, ऐसा ही प्रचार यथासम्भव जन-साधारण में भी करें। ____ भामाशाह-ऐसा ही होगा नरेन्द्र ! आप देखेंगे कि किस उल्लास के साथ वीरताप्रिय युवक सेना में प्रविष्ट होते हैं ! ___ प्रतापसिंह-मुझे आप पर विश्वास है । आशा है आपने सादड़ीसे अपने भ्राता ताराचन्द्र को भी इस युद्ध में भाग लेने बुलवा लिया होगा। भामाशाह-उन्हें मैं सम्वाद भेज चुका हूं, सम्भवतः वे कल प्रभात तक यहां पहुंच जायेंगे। प्रताप सिंह-ठीक, अब रात्रि अधिक हो रही है, अतः परिषद समाप्त की जाये। भामाशाह - ( सभासदों से ) अब आप सब जा सकते हैं। (सबका गमन) पटाक्षेप
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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