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________________ [54] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन ज्ञान की उपयोगिता 1. ज्ञान आत्मा का भोजन है, ज्ञान से आत्मा ताजा स्वस्थ, हृष्टपुष्ट बनती है। ज्ञान आत्मा का सत्त्व और तत्त्व है। 2. ज्ञान आत्मा का मूल गुण है, वह सहज स्वभाव रूप है। 3. मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? और कहाँ जाने वाला हूँ? मेरा स्वरूप क्या है? मेरे जीवन का सार क्या है? मेरा कर्तव्य क्या है? मैं किसके लिए आया हूँ? आदि सभी प्रश्नों का जवाब ज्ञान द्वारा मिल सकता है। 4. ज्ञान आत्मा को पाप से अर्थात् दुर्गति और दुःख से बचा सकता है। 5. ज्ञान आत्मा को सद्गति अर्थात् मोक्ष (अव्याबाध सुख) दिला सकता है। 6. ज्ञान की आराधना से शुरु की गई साधना आगे के भाग में मोक्ष यात्रा में रूपांतरित होता 7. ज्ञान से जीव जगत् के यथार्थ स्वरूप को जानता है। जिससे उसको वैराग्य फल की प्राप्ति होती है, वैराग्य से मोक्ष मिलता है। 8. ज्ञान इस भव और परभव के लिए उपयोगी है, जैसे डोरी सहित सूई गुम नहीं होती और ढूंढने वाले के हाथ में आ जाती है, वैसे ही ज्ञान सहित आत्मा को स्व-स्वरूप का भान करा कर परमात्मा के साथ अनुसंधान करा देता है। 9. अज्ञान जैसे सबसे बड़े दुःख का निवारण ज्ञान से ही सम्भव है। ज्ञान स्वयं सुख का निधान है, ज्ञान आत्मा के स्वरूप का भान करा कर परमात्मा के साथ अनुसंधान करा देता है. 10. ज्ञान जीव को स्थिरता देता है। 11. ज्ञान आत्मा का वैभव, आत्मा की शक्ति, आत्मा का स्वरूप और आत्मा का ध्येय बताता है, मात्र स्वरूप और ध्येय ही नहीं, परंतु उसे प्राप्त करने का मार्ग भी बताता है। 12. प्रथम ज्ञान फिर दया, ज्ञान बिना मनुष्य पशु के समान है। 13. ज्ञान के बिना शुद्ध चारित्र की प्राप्ति नहीं हो सकती है। 14. धर्मज्ञान पाप, अकृत्य, भक्ष्य-अभक्ष्य आदि के सम्बन्ध में विवेक वाला बनता है। 15. ज्ञानी निंदनीय कामों से स्वयं को अलग रख सकता है, बचा सकता है। 16. शास्त्र ज्ञान - सच्चा ज्ञान शंकाओं का छेद करने वाला एवं मोक्षमार्ग का दर्शक है। मोक्ष के लिए ज्ञान ही प्राथमिकता सभी भारतीय दर्शनों ने 'ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः' अर्थात् ज्ञान के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती है, ऐसा स्वीकार किया गया है। जैनदर्शन का भी यही मत है कि केवलज्ञान प्राप्त किये बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि सम्यक् दर्शन (सम्यक् दृष्टि) के बिना ज्ञान सम्यक् नहीं होता और सम्यक् ज्ञान के बिना चारित्र गुण सम्यक् नहीं होता और सम्यक् चारित्र से रहित को मोक्ष (सर्वकर्ममुक्ति) नहीं होता और मोक्ष प्राप्ति से रहित को निर्वाण नहीं होता है। इससे स्पष्ट होता है कि मोक्षोपाय के सन्दर्भ में सम्यक् ज्ञान को प्राथमिकता दी गई है। ज्ञान की परिपूर्णता ही आत्मा का, विशेषतः साधक आत्मा का चरम लक्ष्य है। ज्ञान के परिपूर्ण हो जाने पर आत्मा यथा शीघ्र कर्म, देह और जन्म-मरणादि के दुःखों से सर्वथा विमुक्त हो जाता है। 7. उत्तराध्यन सूत्र, अ. 28 गाथा 30
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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