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________________ [500] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन अयोगी भवस्थ केवलज्ञान के दो भेद हैं - प्रथम समय की अयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान और अप्रथम समय की अयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान अथवा चरम समय की अयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान और अचरम समय की सयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान। दिगम्बर परम्परा में सयोगी और अयोगी के भेदों का उल्लेख नहीं है। सिद्ध केवलज्ञान - जिन्होंने अष्ट कर्म क्षय कर मोक्ष सिद्धि प्राप्त करली है, उनके केवलज्ञान को सिद्ध केवलज्ञान कहते हैं। काल की अपेक्षा से सिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का होता है - १. अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान (सिद्ध अवस्था के प्रथम समय का ज्ञान) और २. परम्पर सिद्ध केवलज्ञान (जिन्हें सिद्ध हुए एक से अधिक समय हो गया उनका ज्ञान)। अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान के पन्द्रह भेद हैं - 1. तीर्थसिद्ध - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना के पश्चात् जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की । जैसे - गौतम स्वामी आदि। 2. अतीर्थसिद्ध - चार तीर्थ की स्थापना के पहले और तीर्थ विच्छेद के बाद जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की । जैसे - मरुदेवी माता। 3. तीर्थंकर सिद्ध - जिन्होंने तीर्थंकर की पदवी प्राप्त करके मुक्ति प्राप्त की । जैसे - भगवान् ऋषभदेव आदि 24 तीर्थंकर। 4. अतीर्थंकर सिद्ध - जिन्होंने तीर्थंकर की पदवी प्राप्त न करके मोक्ष प्राप्त किया । जैसे - गौतम अनगार आदि। 5. स्वयं बुद्ध सिद्ध - बिना उपदेश के पूर्व जन्म के संस्कार जागृत होने से जिन्हें ज्ञान हुआ और सिद्ध हुए । जैसे - कपिल केवली आदि। 6. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध - किसी पदार्थ को देखकर विचार करते-करते बोध प्राप्त हुआ और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । जैसे - करकण्डू राजा आदि। 7. बुद्ध बोधित सिद्ध - गुरु के उपदेश से ज्ञानी होकर जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की। जैसे - जम्बू स्वामी आदि। 8. स्त्रीलिंग सिद्ध - जैसे - चन्दनबाला आदि। दिगम्बर परम्परा के अनुसार स्त्री को मोक्ष नहीं हो सकता है। इसके लिए उन्होंने हीन सत्त्व, वस्त्र परिग्रहरूप होता है, स्त्री पुरुष की अपेक्षा से अवन्दनीय, माया की बहुलता आदि अनेक तर्क प्रस्तुत किये हैं। श्वेताम्बराचार्यों ने इनका युक्तियुक्त समाधान करते हुए स्त्री के मोक्ष गमन को सिद्ध किया है। 9. पुरुष लिंग सिद्ध - जैसे - अर्जुन माली आदि। 10. नपुंसकलिंग सिद्ध - नपुंसकलिंग में सिद्ध होना। जैसे - गांगेय अनगार आदि। नपुसंक लिंग सिद्ध के सम्बन्ध में टीकाकारों के मत की आगम से संगति नहीं बैठती है, क्योंकि टीकाकार नपुसंकलिंग सिद्ध में मात्र कृत्रिम नपुंसक का मोक्ष मानते हैं। जन्म नपुंसक सिद्ध नहीं होता है। लेकिन भगवती सूत्र के शतक 26 उद्देशक 2 (बंधीशतक) के प्रमाण से जन्म नपुंसक भी सिद्ध हो सकते हैं। दिगम्बर परम्परा में स्त्रीलिंग के समान ही नपुसंकलिंग भी सिद्ध नहीं हो सकता है। 11. स्वलिंग सिद्ध - रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि वेष में जिन्होंने मुक्ति पाई । जैसे - गौतम अनगार आदि। 12. अन्य लिंग सिद्ध - जैन वेष से अन्य संन्यासी आदि के वेष में भाव संयम द्वारा केवल ज्ञान उपार्जित कर वेष परिवर्तन जितना समय न होने पर उसी वेष में जिन्होंने मुक्ति पाई । जैसे - वल्कलचीरी आदि। 13. गृहस्थलिंग सिद्ध - गृहस्थ के वेष में जिन्होंने भाव संयम प्राप्त कर केवल ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की । जैसे - मरुदेवी माता आदि। 14. एक सिद्ध - एक समय में एक ही जीव मोक्ष में जावे। जैसे - जम्बू स्वामी आदि। 15. अनेक सिद्ध - एक समय में अनेक जीव मोक्ष में जावे। एक समय में उत्कृष्ट 108 तक मोक्ष में जा सकते हैं। जैसे ऋषभ देव स्वामी आदि।
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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