SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान [457] अतिशय सम्पन्न हैं, चार घाति-कर्म क्षय कर, अर्थ रूप से प्रवचन प्रकट कर गणधरादि चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं, ऐसे अर्हन्त को 'तीर्थंकर' कहते हैं। 4. अतीर्थंकर सिद्ध - जो सामान्य केवली के रूप में मुक्त होते हैं, वे अतीर्थंकर सिद्ध हैं। सामान्य केवली, जैसे गौतम आदि । 02 परोपकार करना, केवलज्ञान और सिद्धत्व में सहायक कारण है, परन्तु उत्कृष्ट उपकारी तीर्थंकर बनकर सिद्ध होने वाली आत्माएं बहुत अल्प होती हैं। अधिकांश आत्माएँ सामान्य परोपकार करके या बिना परोपकार किये ही केवलज्ञान और सिद्धत्व प्राप्त कर लेती हैं। 5. स्वयंबुद्ध सिद्ध - जो स्वयंबुद्ध होकर मुक्त होते हैं अर्थात् जो बाह्य निमित्त के बिना किसी के उपदेश, प्रवचन सुने बिना ही जातिस्मरण, अवधिज्ञान आदि के द्वारा स्वयं विषय कषायों से विरक्त हो जाएँ, उन्हें स्वयंबुद्ध सिद्ध कहते हैं। 03 स्वयंबुद्ध के दो अर्थ किए गए हैं - 1. जिसे जातिस्मरण के कारण बोधि प्राप्त हुई है और 2. जिसे बाह्य निमित्त के बिना ही बोधि प्राप्त हुई है। मलयगिरि ने भी इस प्रसंग में जातिस्मरण का उल्लेख किया है। स्वयंबुद्ध के बारह प्रकार की उपधि होती है। उनके पूर्व अधीत (सीखा) श्रुत होता भी है और नहीं भी होता। यदि वे अनधीतश्रुत होते हैं तो नियमत: गुरु के पास लिंग ग्रहण करते हैं और गच्छ में रहते हैं। जो पूर्व अधीतश्रुत होते हैं, उन्हें देवता लिंग प्रदान करते हैं अथवा वे गुरु के पास लिंग ग्रहण करते हैं। वे इच्छानुसार एकाकी विहार भी कर सकते हैं, अन्यथा गच्छ में विचरण करते हैं। इस अवस्था में सिद्ध होने वाले स्वयंबुद्धसिद्ध कहलाते हैं। 05 6. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध - प्रत्येकबुद्ध का अर्थ है किसी बाह्य निमित्त से प्रतिबुद्ध होने वाला अर्थात् उपदेश, प्रवचन श्रवण किये बिना जो बाहर के निमित्तों द्वारा बोध को प्राप्त हुए हैं, जैसे नमिराजर्षि, उन्हें प्रत्येक बुद्ध सिद्ध कहते हैं। आवश्यकचूर्णि में प्रत्येकबुद्ध की पहचान चार प्रकार से बताई हैं - १. बोधि - प्रत्येकबुद्ध बाह्य निमित्तों से प्रतिबुद्ध होते हैं और नियमतः प्रत्येक बुद्ध एकाकी विहार करते हैं। २. उपधि - इनके जघन्यतः दो प्रकार की उपधि होती है - रजोहरण और मुखवस्त्रिका तथा उत्कृष्टतः नौ प्रकार की उपधि होती है - पात्र, पात्रबंध, पात्रस्थापन, पात्रकेसरिका, पटल, रजस्त्राण, गोच्छग, रजोहरण और मुखवस्त्र। चोलपट्ट, मात्रक और तीन कल्प यह पांच प्रकार की उपधि इनके नहीं होती। स्थविरकल्पी मुनि के चौदह प्रकार की उपधि होती है। ३. श्रुत - प्रत्येकबुद्ध के श्रुत नियमतः पूर्वअधीत होता है, जघन्यतः आचार आदि ग्यारह अंग, उत्कृष्ट भिन्न दस पूर्व। ४. लिंग - इन्हें देवता लिंग प्रदान करते हैं, अथवा ये लिंगविहीन भी प्रव्रजित होते हैं।107 7. बुद्धबोधित सिद्ध - जिन्होंने स्वयं या किसी बाह्य निमित्त से नहीं, परन्तु गुरु से बोध पाया, उन्हें 'बुद्ध बोधित' कहते हैं, जो बुद्ध से बोधित होकर सिद्ध हुए, उन्हें 'बुद्ध बोधित सिद्ध' कहते हैं। चूर्णिकार ने बुद्धबोधित के चार अर्थ किए हैं - १. स्वयंबुद्ध तीर्थकर आदि के द्वारा बोधि प्राप्त। २. कपिल आदि प्रत्येक बुद्ध के द्वारा बोधि प्राप्त। ३. सुधर्मा आदि बुद्धबोधित के द्वारा बोधि प्राप्त। ४. आचार्य के द्वारा प्रतिबुद्ध प्रभव आदि आचार्य से बोधि प्राप्त ।108 हरिभद्र और मलयगिरि ने बुद्धबोधित का अर्थ आचार्य के द्वारा बोधि प्राप्त किया है। 09 गुरु, केवलज्ञान और सिद्धत्व में सहायक कारण हैं। अतएव अधिकांश आत्माएं उन्हीं से बोधित होकर केवलज्ञान और सिद्धत्व प्राप्त करती हैं। परन्तु कुछ आत्माएं स्वयं या बोध रहित सचित्त-अचित्त वस्तुओं से बोध प्राप्त करके भी केवलज्ञान और सिद्धत्व प्राप्त कर लेती हैं। 102. नंदीचूर्णि पृ. 44 103. नंदीचूर्णि पृ. 44 104. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 130 105. आवश्यकचूर्णि भाग 1, पृ. 76 106. नंदीचूर्णि पृ. 44 107. आवश्यकचूर्णि भाग 1 पृ. 76 108. नंदीचूर्णि, पृ. 45 109. हारिभद्रीय वृत्ति पृ. 46, मलयगिरि नंदीवृत्ति पृ. 131
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy