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________________ षष्ठ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में मन:पर्यवज्ञान [427] ऋजुमति के विषयभूत उत्कृष्ट द्रव्य में भाग देने पर जो प्रमाण आता है, वह विपुलमति के विषयभूत जघन्य द्रव्य का परिमाण होता है एवं आठों कर्मों के विस्रसोपचय रहित सामान्य समय प्रबद्ध में ध्रुवहार से एक बार भाग देने पर जो एक खण्ड आता है, वह विपुलमति का विषय दूसरा द्रव्य होता है, उस दूसरे द्रव्य में असंख्यात कल्पकाल के समयों की संख्या जितनी है, उतनी बार ध्रुवहार से भाग देने पर जो परिमाण प्राप्त होता है, वह विपुलमति के विषयभूत सर्व उत्कृष्ट द्रव्य होता है।82 मनःपर्यवज्ञान का क्षेत्र भगवती सूत्र और नंदीसूत्र की अपेक्षा से - ऋजुमति मन:पर्यवज्ञानी, जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग जानते देखते हैं तथा उत्कृष्ट से नीचे इस रत्नप्रभा पृथ्वी के उपरिम अधस्तन क्षुद्र प्रतर तक जानते देखते हैं ऊपर ज्योतिषियों के उपरितल तक जानते देखते हैं। तिरछे मनुष्य क्षेत्र तक जानते देखते हैं। मनुष्य क्षेत्र में अढाईद्वीप हैं, दो समुद्र हैं। अढाईद्वीप में पन्द्रह कर्म भूमि, तीस अकर्मभूमियाँ और लवण समुद्र में छप्पन अन्तर्वीप हैं। इन सब क्षेत्रों में जितने संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त पशु, मानव अथवा देव हैं, उनके मनोगत भावों को जानते-देखते हैं। उसी क्षेत्र को विपुलमति एक दिशा से भी अढ़ाई अंगुल अधिक और सभी दिशाओं में भी ढ़ाई अंगुल विपुलतर जानते देखते हैं तथा उन क्षेत्र-गत मनोद्रव्यों को विशुद्धतर तथा वितिमिरतर जानते देखते हैं।183 लोक के मध्य भाग में आकाश के आठ रुचक प्रदेश हैं जहाँ से पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण और ऊंची (विमला) नीचे (तमा) ये छह दिशाएं और आग्नेय आदि चार विदिशाए निकलती हैं। ऊंची (विमला) दिशा में चन्द्र आदि ज्योतिषी देवों के तथा भद्रशाल वन में रहने वाले संज्ञी जीवों के मन की पर्यायों को भी मन:पर्यवज्ञानी प्रत्यक्ष करते हैं। नीचे मेरु. पुष्कलावती विजय के अर्न्तगत ग्राम-नगरों जम्बूद्वीप में रहे हुए संज्ञी जीवों के मन की पर्यायों लवणसमुद्र को उपयोग पूर्वक प्रत्यक्ष करते हैं। यह धातकीखंड मनःपर्यायज्ञान का उत्कृष्ट विषय क्षेत्र हैं। कालोदधिसमुद्र मानुषोत्तर पर्वत कुण्डलाकार है, उसके अर्ध पुष्करद्वीप मानुष्योत्तरपर्वत अन्तर्गत अढ़ाई द्वीप और समुद्र हैं, उसे (चित्र : 45 लाख योजन का मनुष्यक्षेत्र अर्थात् अढ़ाईद्वीप) समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) भी कहते हैं। (जम्बूद्वाप 1 लाखयाजन, लवणसमुद्र 4 लाखयाजन (दा उसकी लम्बाई चौडाई 45 लाख योजन का। का मिलाकर, ऐसा आगे भी समझ लेना चाहिए),धातकीखंड 8 की है। इसके बाहर मनुष्यों का अभाव है। लाखयोजन,कालोदधिसमुद्र 16लाखयोजन,अर्धपुष्करद्वीप 16 लाख योजन इस प्रकार कुल 45 लाखयोजन का मनुष्यक्षेत्र होता है।) 182. गोम्मटसार, जीवकांड, गाथा 451 से 454 का भावार्थ, पृ. 671-673 183. खित्तओ णं उज्जुमई य जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजयभाग, उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डुगपयरे, उड्डे जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोमणुस्सखित्ते अड्डाइजेसु दीवसमुद्देसु पण्णरस्ससु कम्मभूमिसु तीसाए अकम्मभूमिसु छप्पण्णाए अंतरदीवगेसु सण्णिपंचेंदियाणं पजत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अड्डाइजेहिमंगुलेहिं अब्भहियतरं विउलतरं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ। - पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 82-83, भगवतीसूत्र, श. 8 उ. 2 पृ. 288
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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