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________________ [402] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन मनःपर्यवज्ञान और अनुमान जिस प्रकार धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान अनुमान से किया जाता है, वैसे ही मन:पर्यवज्ञानी दूसरे के द्रव्यमन की पर्यायों को देखकर वस्तु को अनुमान से जानता है। इसलिए मन:पर्यवज्ञान भी अनुमान का ही एक भेद है। यदि कोई ऐसी शंका करे तो इस शंका का समाधान यह है कि मन:पर्यवज्ञान और अनुमान दोनों भिन्न-भिन्न स्वभाववाले हैं। जो अनुमान से जानेगा वह इन्द्रियों से हेतु को देखकर या परोपदेश से हेतु को जानकर ही जानेगा, इसलिए परोक्ष है। इसके विपरीत मनःपर्यवज्ञान में न तो इन्द्रियों की अपेक्षा रहती है और न ही परोपदेश की, क्योंकि मन:पर्यवज्ञान में प्रत्यक्ष का लक्षण घटित होता है और मनःपर्यवज्ञान में मन की अपेक्षा मात्र होती है। जिस ज्ञान में इन्द्रिय और मन की अपेक्षा नहीं होती एवं जो अव्यभिचारी है और साकार ग्रहण होता है, वह प्रत्यक्ष है। मन:पर्यवज्ञान में ऊपर जो प्रत्यक्ष का लक्षण दिया है वह घटित होता है तथा प्रत्यक्षज्ञान आत्मा से उत्पन्न होता है। अतः अनुमान परोक्ष ज्ञान और मन:पर्यवज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान है, इससे दोनो की भिन्नता स्पष्ट है। मनःपर्यवज्ञान और श्रुत वीरसेनाचार्य ने 'मणेण' का अर्थ मतिज्ञान करके मन:पर्यायज्ञान के पूर्व में मतिज्ञान का अस्तित्व स्वीकार किया है। यदि "मइपुव्वं जेण सुयं, न मई सुअपुव्विआ। 146 इस सिद्धांत के अनुसार मति के बाद श्रुतज्ञान का क्रम होता है, तो इससे मति (मन) के बाद में प्राप्त होने से मनःपर्याय को श्रुतज्ञान कहना चाहिए। इसका समाधान यह है कि श्रुतज्ञान परोक्ष है। जबकि, मन:पर्याय ज्ञान प्रत्यक्ष है। इसलिए मन:पर्याय को श्रुत नहीं मान सकते हैं। मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति से पूर्व अवधिज्ञान की आवश्यकता है या नहीं अवधिज्ञान भी एक प्रकार की ऋद्धि है। इसलिए कुछ आचार्यों ने मन:पर्यव ज्ञान की प्राप्ति से पूर्व अवधिज्ञान की अनिवार्यता को स्वीकार किया है। नंदीचूर्णि में इस मान्यता का उल्लेख प्राप्त होता है। हरिभद्रसूरि नंदीवृत्ति में इस सम्बन्ध में मौन रहे हैं। लेकिन मलयगिरि ने इस मान्यता का खण्डन किया है।' सिद्धप्राभृत आदि ग्रंथों के अनुसार बिना अवधिज्ञान के मन:पर्यव ज्ञान हो सकता है। मलयगिरि के बाद के आचार्यों ने भी इस मत का समर्थन किया है। क्योंकि आगमों में भी इसी मत का उल्लेख है। जैसेकि "भगवन् ! जीव ज्ञानी है या अज्ञानी? उत्तर - गौतम! जीव ज्ञानी भी है और अज्ञानी भी है। जो जीव ज्ञानी है, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन ज्ञान वाले है, कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं और कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे 44. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.23.6-7, पृ. 58, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 1.23.12 पृ. 24 45. मणेण मदिणाणेण। -षट्खण्डागम (धवलाटीका), भाग 13, सूत्र 5.5.63, पृ. 332 46. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 70 47. धवलाटीका, पु. 13, सूत्र 5.5.71, पृ. 341 48. प्रवचनसारोद्धार, द्वार 270 गाथा 1492 49. अहवा ओहिनाणिणो मणपज्जवमाणं उप्पज्जति त्ति अण्णे नियम भणंति। -नंदीचूर्णि, पृ. 37 50. अन्य त्ववधिऋद्धौ नियममभिदधति। - हारिभद्रिय नंदीवृत्ति, पृ. 38 51. अन्ये त्ववध्युद्धिप्राप्तस्यैवेतिनियममाचक्षते, तदयुक्तं, सिद्धप्राभृतादाववधिमन्तरेणापि मन:पर्यायज्ञानस्यानेकशोऽभिधानात् / - मलयगिरि नंदीवृत्ति, पृ. 107, पंक्ति 17
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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