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________________ विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन आवश्यकनियुक्ति की वृत्ति में सामान्यतया वर्गणा के चार प्रकार बताये हैं कालतः और भावतः 1170 द्रव्यवर्गणा [326] द्रव्यतः, क्षेत्रतः, समस्त लोकाकाश के प्रदेशों पर अवस्थित एक - एक परमाणुओं की एक वर्गणा है। दो परमाणु के संयोग से बने स्कंधों की दूसरी वर्गणा है। त्रिप्रदेशी स्कंधों की तीसरी वर्गणा है। इस प्रकार से एक-एक परमाणु बढ़ते-बढ़ते संख्यात प्रदेशी स्कंध की संख्याती वर्गणाएं है। इनमें प्रत्येक परमाणु की एकोत्तर वृद्धि से असंख्यात प्रदेशी स्कंध की असंख्याती वर्गणा और फिर प्रत्येक परमाणु की एकोत्तर वृद्धि से अनंत प्रदेशी स्कंध के समूह की अनंती वर्गणा होती है। 71 द्रव्य वर्गणा के प्रकार आवश्यक नियुक्ति 72 और विशेषावश्यकभाष्य 73 में द्रव्य वर्गणा आठ प्रकार की बताई है, यथा औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण इन आठ वर्गणाओं में अनुक्रम से द्रव्य समूह तो अधिक और क्षेत्र में इससे विपरीत क्रम है अर्थात् क्रम से क्षेत्र सूक्ष्म है। औदारिक शरीर वर्गणा - एक से लेकर अनंत प्रदेशी स्कंध वर्गणाएं अल्प परमाणु वाली होने से जीव द्वारा ग्रहण नहीं की जाती हैं, इसलिए इन्हें अग्रहण वर्गणा कहते हैं। 174 ग्रहण वर्गणा अभव्य जीवों की राशि से अनंत गुणा और सिद्ध जीवों की राशि के अनंतवें भाग प्रमाण परमाणुओं से जो स्कंध बनते हैं अर्थात् जिन स्कंधों में इतने परमाणु होते हैं कि वे स्कंध जीव के द्वारा ग्रहण करने योग्य होते हैं, जीव उन्हें ग्रहण करके अपने औदारिक शरीर रूप परिणमता है, इसलिए उन स्कंधों को औदारिक वर्गणा कहते हैं । जो औदारिक शरीर के ग्रहण करने योग्य वर्गणा नहीं हैं, उन वर्गणा में प्रत्येक प्रदेश की वृद्धि से तथाविध विशिष्ट परिणाम से परिणत ऐसी अनंत प्रदेशी स्कंध की अनंती वर्गणाएं औदारिक शरीर के ग्रहण करने योग्य हैं अर्थात् औदारिक शरीर को उत्पन्न करने योग्य हैं । औदारिक शरीर के ग्रहण योग्य वर्गणाओं में यह वर्गणा सबसे जघन्य होती है। उसके बाद ग्रहण करने योग्य अनंती वर्गणाएं होती है, अतः औदारिक शरीर के ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणा से अनंतवें भाग अधिक परमाणु वाली औदारिक शरीर के ग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है । उत्कृष्ट वर्गणाओं के ऊपर एक-एक प्रदेश की वृद्धि होते होते पुनः औदारिक शरीर के ग्रहण के अयोग्य ऐसी अनंत वर्गणाएं होती हैं। क्योंकि ये वर्गणाएं अधिक प्रदेश वाली एवं सूक्ष्म होने से औदारिक शरीर के ग्रहण योग्य नहीं होती है। इस प्रकार औदारिक शरीर की वर्गणा तीन प्रकार की है- पहली अग्रहण वर्गणा, दूसरी ग्रहण वर्गणा और तीसरी अग्रहण वर्गणा । वैक्रिय शरीर वर्गणा - औदारिक शरीर के अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा के ऊपर एक-एक प्रदेश की वृद्धि होती है लेकिन यह वैक्रिय शरीर के अग्रहण योग्य है, क्योंकि ये वर्गणाएं अल्प प्रदेश वाली और स्थूल होने से वैक्रिय शरीर के भी ग्रहण करने योग्य नहीं होती हैं। केवल वैक्रिय शरीर के ग्रहण योग्य वर्गणा के समीप होने से उसके जैसी दिखती है। अतः वह वैक्रिय शरीर अग्रहण योग्य वर्गणा कहलाती है। इस प्रकार आगे की वर्गणाओं में भी जान लेना चाहिए । 170. वर्गणाः सामान्यतश्चतुर्विधा भवन्ति, तद्यथा - द्रव्यत: क्षेत्रतः कालतो भावतश्च । आवश्यकनिर्युक्ति मलयगिरिवृत्ति पृ. 57 171. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 633, 634 172. ओराल-विउत्वा-हार - तेय - भासा - णुपाण-मण-कम्मे । अह दव्ववग्गणाणं कमो विवज्जासओ खेत्ते । आवश्यकनिर्युक्ति गा० 39 173. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 631 174. पं. सुखलाल संघवी, कर्मग्रंथ भाग 5 पृ. 207
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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