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________________ [276] 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति 288000 6. ज्ञाताधर्म कथांग 7. उपासकदसांग संख्यात हजार (576000) संख्यात हजार (1152000) संख्यात हजार (2304000) 8. अंतकृतदसांग 9. अनुत्तरौपपात्तिकदसांग संख्यात हजार (4608000) 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाक श्रुत दृष्टिवाद विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन - अनेक दृष्टियों (दर्शनों) का जहाँ कथन (वाद) है, अथवा सभी दृष्टियाँ जहाँ आकर गिरे (पात) वह दृष्टिवाद है। किसी भी द्रव्य या पदार्थ में रहे हुए द्रव्यत्व, अनन्तगुण तथा अनन्तपर्याय में से किसी एक को मुख्य करके तथा अन्य को गौण करके जानना, देखना, समझना, कहना 'नय' है। जैसे - जीव के जन्ममरणादि को मुख्य करके जीव को 'अनित्य' अथवा भवभवान्तर में अविनाशीपन को मुख्य करके नित्य कहना नय है। जिसमें सभी नय-दृष्टियों का कथन हो, उसे 'दृष्टिवाद' कहते हैं । स्थानांग सूत्र (स्थान 10) में दृष्टिवाद के दस नाम बताये हैं, यथा- 1. दृष्टिवाद - जिसमें भिन्न भिन्न दर्शनों का स्वरूप बताया गया हो, 2. हेतुवाद - जिसमें अनुमान के पांच अवयवों का स्वरूप बताया गया हो। 3. भूतवाद - जिसमें सद्भूत पदार्थों का वर्णन किया गया हो। 4. तत्त्ववाद जिसमें तत्त्वों का वर्णन हो अथवा तथ्यवाद - जिसमें तथ्य यानी सत्य पदार्थों का वर्णन हो। 5. सम्यग्वाद - जिसमें वस्तुओं का सम्यग् स्वरूप बतलाया गया हो। 6. धर्मवाद - जिसमें वस्तु के पर्यायों का अथवा चारित्र का वर्णन किया गया हो। 7. भाषाविजयवाद - जिसमें सत्य, असत्य आदि भाषाओं का वर्णन किया गया हो। 8. पूर्वगत वाद - जिसमें उत्पाद आदि चौदह पूर्वों का वर्णन किया गया हो। 9. अनुयोगगतवाद - अनुयोग दो तरह का है - प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग । इन दोनों अनुयोगों का जिसमें वर्णन हो उसे अनुयोगगतवाद कहते हैं । 10. सर्व प्राणभूतजीव सत्त्व सुखावह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को प्राण कहते हैं । वनस्पति को भूत कहते हैं। पञ्चेन्द्रिय प्राणियों को जीव कहते हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय को सत्त्व कहते हैं। इन सब प्राणियों को सुख का देने वाला वाद सर्व प्राण भूत जीव सत्त्व सुखावह वाद कहते हैं । - दिगम्बर साहित्य के अनुसार इस बारहवें अंग में 363 मिथ्यादृष्टियों के स्वरूप का विस्तार से निरूपण करते हुए खंडन किया गया है। मिथ्यादृष्टियों के 363 भेदों में मूल रूप से चार भेद हैं क्रियावादी (180), अक्रियावादी (84), अज्ञानवादी (67) और विनयवादी ( 32 ) । इनके उत्तर भेदों को मिलाने पर कुल 363 पांखड मत होते हैं। इस अंग के पदों का प्रमाण एक सौ आठ करोड अडसठ लाख छप्पन हजार पांच है। अकलंक ने राजवार्तिक में इनका विस्तार से वर्णन किया है, मुख्य रूप से उसी को आधार बनाते हुए धवलाटीका और गोम्मटसार के विषय को ध्यान में रखते हुए यहाँ उल्लेख किया जा रहा है। दृष्टिवाद के भेद दृष्टिवाद के संक्षेप में पांच भेद इस प्रकार हैं 1. परिकर्म - योग्यता संपादन की भूमिका 2. सूत्र - विषय सूचना अनुक्रमणिका 3. पूर्वगत मुख्य प्रतिपाद्य विषय 4. अनुयोग - अनुकूल दृष्टान्त कथानक 5. चूलिका - उक्त अनुक्त संग्रह 71 371. नंदीसूत्र, पृ. 190 - 84000 228000 556000 संख्यात हजार (576000) संख्यात हजार (1152000) 1170000 संख्यात हजार (2304000) 2328000 संख्यात हजार (4608000) 9244000 संख्यात हजार (9216000) संख्यात हजार (9216000) 9316000 संख्यात हजार (18432000 ) संख्यात हजार (18432000) 18400000 -
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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