SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान [273] अध्ययन, समवायांग में 10 अध्ययनों के अलावा सात वर्गों का तथा नन्दी में केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। वर्तमान अंतगडदसा के प्रथम वर्ग में जिन दस अध्ययनों का उल्लेख है, वे दस अध्ययन स्थानांग में वर्णित दस नामों से भिन्न है।65 9. अनुत्तरौपपातिक अनुत्तरौपपातिक का अर्थ है-जिससे बढ़कर श्रेष्ठ एवं प्रधान अन्य कोई देवलोक नहीं है, ऐसे सर्वोत्तम देवलोक में जो उत्पन्न हुए हैं, ऐसे साधुओं का जिसमें चरित्र हो, उसे 'अनुत्तर औपपातिक दसा' कहते हैं। अनुत्तर विमान पांच हैं, यथा - विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध। यहाँ दशा शब्द का अर्थ अध्ययन विशेष है। अनुत्तर औपपातिकदशा में अनुत्तर औपपातिकों के नगरादि का वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग के समान है। इसके एक श्रुतस्कंध में तीन वर्ग हैं, पहले वर्ग में दस, दूसरे वर्ग में तेरह और तीसरे वर्ग में दस अध्ययन हैं। इस प्रकार इसमें तैंतीस अध्ययन हैं। संख्येय हजार (अर्थात् 46 लाख 8 हजार) पद हैं तथा वर्तमान में 192 श्लोक परिमाण हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उपपाद जिनका प्रयोजन है, वे औपपातिक हैं। विजय, वैयजन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि नामक अनुत्तरों में उपपाद जन्म लेने वाले अनुत्तरौपपादिक होते हैं। प्रत्येक तीर्थ में दस-दस मुनि दारुण महान् उपसर्गों को सहकर प्रतिहार्य प्राप्त करके समाधिपूर्वक प्राणों को त्यागकर विजयादि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं, उनका वर्णन अनुत्तरौपपादिकदशा नामक नौवें अंग में है। ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नन्द नन्दन शालिभद्र, अभय, वारिषेण, चिलातपुत्र ये दस भगवान् महावीर स्वामी के तीर्थ में अनुत्तरौपपादिक हुए है। इसमें 92 लाख 44 हजार पद हैं। समीक्षा - दिगम्बर साहित्य के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि अन्तकृद्दशा के समान 24 तीर्थंकरों के तीर्थ में होने वाले 10-10 अनुत्तरौपपातिकों का वर्णन अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र में है। लेकिन ऐसा उल्लेख श्वेताम्बर साहित्य में ऐसा वर्णन नहीं है। भगवान् महावीर के समय में जो 10 अनुत्तरौपपातिक हुए उनके नामों का स्थानांग में उल्लेख हैं, उसमें से पांच नाम दिगम्बर ग्रन्थों में भी मिलते हैं। स्थानांग और समवायांग में इसके 10 अध्ययनों का उल्लेख है। नन्दी में अध्ययनों का उल्लेख ही नहीं है। वर्तमान ग्रन्थ में वर्णित केवल तीन नाम ऐसे हैं जो स्थानांग और दिगम्बर ग्रन्थों में समानता रखते हैं। वर्तमान अनुत्तरौपपातिक में जिन दस अध्ययनों का उल्लेख है, वे दस अध्ययन स्थानांग में वर्णित दस अध्ययनों के नामों से भिन्न है।66 10. प्रश्नव्याकरण जिसमें प्रश्न का व्याकरण अर्थात् उत्तर हो, उसे 'प्रश्नव्याकरण' कहते हैं। प्राचीन प्रश्नव्याकरण में 108 प्रश्नों, 108 अप्रश्नों तथा 108 प्रश्न-अप्रश्नों के माध्यम से तीनों कालों के शुभ-अशुभ कहने वाली विद्याओं का निरूपण है, इसमें 1. अंगूठे से ही प्रश्न के शुभाशुभ फल का सुनाई देना 2. बाहुप्रश्न - बाहु से ही प्रश्न के शुभाशुभ फल का सुनाई देना 3. आदर्श प्रश्न - दर्पण में शुभाशुभ फल का दृश्य दिखाई देना आदि सैकड़ों विचित्र विद्याएँ और विद्याओं के अतिशय का तथा मुनियों के जो नागकुमार, स्वर्णकुमार आदि के साथ दिव्य संवाद हुए उनका वर्णन था। इसका एक श्रुतस्कंध है। 45 अध्ययन हैं। अध्ययन हैं। संख्यात हजार (अर्थात् 92 लाख 16 हजार) पद हैं तथा वर्तमान में 1300 श्लोक परिमाण हैं। किन्तु यह प्रश्नव्याकरण वर्तमान में अनुपलब्ध है। वर्तमान उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध का नाम आस्रव द्वार 365. स्थानांग सूत्र, स्थान 10, पृ. 727 366. स्थानांग सूत्र, स्थान 10, पृ. 728
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy